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भाषण: डर्बनके भोज में

कौन-सी शक्तियाँ छिपी पड़ी हैं। वास्तविक शिक्षाका यह एक अत्यावश्यक अंग होना चाहिए कि बच्चा सीख ले कि जीवन संघर्ष में प्रेम द्वारा घृणा, सत्य द्वारा असत्य और कष्ट-सहन द्वारा हिंसापर आसानीसे विजय पाई जा सकती है। मैंने इस सत्यका बल महसूस किया है। इसलिए मैंने संघर्ष के उत्तरार्द्धमें पहले टॉल्स्टॉय फार्म और बादमें फीनिक्समें बच्चोंको इसी ढंग से प्रशिक्षित करनेका यथाशक्य प्रयास किया है; और मेरे भारत जानेका एक यह भी कारण है कि मैं सत्याग्रहीके रूपमें अपनी अपूर्णताको ज्यादा अच्छी तरह समझ सकूँ--जिसे मैं एक हद तक महसूस करता भी हूँ-- और फिर मैं अपने आपको पूर्ण बनानेका प्रयास करूं, क्योंकि मेरा विश्वास है कि पूर्णताके निकटतम पहुँचनेकी सम्भावना भारतमें ही सबसे अधिक है।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन : स्वर्ण अंक १९१४

३६०. भाषण : डर्बनके भोजमें'

[जुलाई ११, १९१४]

श्री गांधीने उपस्थित सज्जनोंको अपने प्रति की गई आरोग्य कामनाके लिए धन्य- वाद देते हुए कहा कि मेरी बहुत अधिक प्रशंसा की गई है; अधिक प्रशंसासे मनुष्यम अहंकार आ जानेका अन्देशा रहता है। जब किसी मनुष्यकी बहुत अधिक प्रशंसा होने लगे तो उसे सावधान हो जाना चाहिए। समझौतेके बारेमें उन्होंने कहा कि यह वर्तमान कठिनाइयोंका हल तो है, परन्तु पूरा समझौता नहीं है। कोई उसे सम्पूर्ण स्वाधीनताका परवाना न समझे। अभी बहुतसे प्रश्न बचे हैं जिनको हल करनेके लिए धीरजकी जरूरत है। इनमें से एक सवाल परवानोंका है। मैं इसका हल कभी नहीं ढूंढ पाया। उसे हल करनेके लिए सरकारको बहुत कुशलता और न्याय-बुद्धिसे काम लेना होगा। भारतीयोंको भी सफाई और इमारतों सम्बन्धी उपनियमोंका ध्यान रखनेकी जरूरत है। भारतीयों में एक वर्ग ऐसा है जो जन्मतः व्यापारी है। अगर इन लोगोंसे उनकी रोजीका साधन छीन लिया जायेगा तो एक कठिन समस्या खड़ी हो जायेगी। इस समझौतेका महत्व समझौतेके लिए किये गये संघर्षम है। इस संघर्षने दक्षिण आफ्रिकाकी विवेक-बुद्धिको जगा दिया है। और आज जो सारा रुख पलटा हुआ दिखता है उसका कारण भी यही संघर्ष ही है। ( हर्ष-ध्वनि ) । इस रुखको कायम रखना भारतीयोंके

१. गांधीजीके सम्मानमें डर्बनमें एक भोजका आयोजन किया गया था जिसमें मेयर, अन्य प्रमुख यूरोपीय तथा लगभग ३० भारतीयोंने भाग लिया। अध्यक्षता श्री रॉबर्ट जेम्सन, जे० पी० ने की। इस अवसरपर विदाई-समिति द्वारा गांधीजी और कुमारी श्लेसिनको मानपत्र भेंट किये गये।

२. १३-७-१९१४ के नेटाल मर्क्युरी में इस जगह इतना और जोड़ा गया था: “कई चीजोंके त्यागके बदलेमें उन्हें इसका केवल एक अंश ही मिला है। "