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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाने उससे शासित होनेके लिए सहमत हो। हम ट्रान्सवालके १९०७ के एशियाई अधि- नियमसे शासित नहीं होना चाहते थे, इसलिए इस विराट् शक्तिके सामने उसे मुँहकी खानी पड़ी। हमारे सामने दो रास्ते थे. - उस अधिनियमके पालनके लिए विवश किये जानेपर हम या तो हिंसाका सहारा लेते, या फिर अधिनियममें विहित दण्ड भोगते और एक लम्बे अर्सेके दौरान कष्ट-सहन करते हुए अपने अन्दर मौजूद आत्मिक बलका तबतक प्रदर्शन करते रहते जबतक वह शासकों या कानून बनानेवालोंके हृदयमें सहानु- भूतिका भाव जगाने में सफल न हो जाता। हम जिसके लिए प्रयत्नशील थे, उसे हासिल करने में हमें काफी लम्बा समय लग गया। क्योंकि हमारा सत्याग्रह सोलहों आने खरा नहीं था। सभी सत्याग्रही इस बलका पूरा महत्त्व नहीं समझते, और न हमारे पास ऐसे आदमी हैं जो हर हालत में [ अहिंसा में ] अपने पूर्ण विश्वासके कारण हिंसासे दूर रहते हों। इस बलके प्रयोगके लिए यह अपेक्षित है कि हम गरीबीको अपनायें, अर्थात् हमारे पास पहिननेके लिए कपड़े और खानेके लिए भोजन है या नहीं, इसके प्रति हम उदासीन रहें। पिछले संघर्ष के दौरान सभी सत्याग्रही तो इस सीमा तक जानेके लिए तैयार नहीं थे; शायद एकाध ही कोई ऐसा रहा हो। और कुछ तो नाममात्रके ही सत्या- ग्रही थे। वे विश्वाससे प्रेरित होकर इसमें नहीं आये थे; अधिकांशके उद्देश्य सर्वथा विशुद्ध नहीं थे और कुछ तो खोटे भी थे । यदि इतनी सतर्कतासे उनपर नजर न रखी जाती तो उनमें कुछ ऐसे भी थे जो संघर्षके दौरान बड़ी खुशीसे हिंसाका सहारा ले लेते । संघर्ष लम्बा खिचनेका कारण यही था, वरना सर्वथा पूर्ण और विशुद्धतम आत्मिक बलके प्रयोगसे तो तुरन्त राहत मिलती है। इस बलका प्रयोग करने में समर्थ होनेके लिए यह नितान्त आवश्यक है कि व्यक्ति अपनी आत्माको एक लम्बे अर्से तक प्रशिक्षित करे, इसलिए कि सोलहों आने खरा सत्याग्रही बननेके लिए उसे यदि सोलहों आने नहीं तो चौदह-पन्द्रह आने खरा इन्सान बनना ही पड़ेगा। हम सभी एकाएक तो इतने खरे इन्सान नहीं बन सकते, परन्तु यदि मेरी बात सही है - - और मैं जानता हूँ कि सही है - तो हमारे अन्दर सत्याग्रहकी भावना जितनी गहरी होगी, हम उतने ही अच्छे इन्सान बन जायेंगे । इसलिए मैं समझता हूँ कि इसकी उपयोगिता निर्विवाद है; और यह एक ऐसा बल है जो यदि सार्वभौमिक बन जाये तो सामाजिक आदर्शमें क्रान्ति ला देगा और उस निरंकुशता तथा निरन्तर पैर पसारते जानेवाले सँन्यवादकी कपाल- क्रिया कर देगा जिसके जुएके नीचे पाश्चात्य देश कराह रहे हैं, जिसके बोझसे उनका दम घुटा जा रहा है और जो लगता है कि पूर्वके देशोंकी ओर दिन-ब-दिन मुँह बाये बढ़ता जा रहा है। पिछले संघर्षने यदि मुट्ठीभर भी ऐसे भारतीय पैदा कर दिये हों जो अपना जीवन यथासम्भव अधिकसे-अधिक खरे सत्याग्रही बननेके लिए अर्पित करनेको तैयार हों, तो वे सच्चे मायने में अपनी ही नहीं समूचे मानव-समाजकी सेवा करेंगे। इस दृष्टिसे, सत्याग्रह ही सबसे उच्चतर और सर्वोत्तम शिक्षा है। ऐसी शिक्षा बच्चोंको साधारण पढ़ाई-लिखाईके बाद नहीं बल्कि उससे पहले दी जानी चाहिए। इस बातसे इनकार नहीं किया जा सकता कि बच्चोंको अक्षर-ज्ञान और संसारकी जानकारी हासिल करनेसे पहले यह जानना चाहिए कि आत्मा, सत्य और प्रेम क्या है और आत्मामें