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३५९. सत्याग्रहका सिद्धान्त और व्यवहार

[जुलाई ११, १९१४ से पूर्व]

इस विशेषांक के प्रकाशित होते-होते, मैं यदि मातृभूमि तक नहीं तो कमसे-कम फीनिक्ससे तो काफी दूर पहुँच ही चुकूंगा । परन्तु जिसके कारण यह विशेषांक निकालना जरूरी हो गया है उसके बारेमें अपने अन्तरंग विचार प्रकट करके जाऊँगा । यदि अनाक्रामक प्रतिरोध (पैसिव रेजिस्टेंस ) न होता तो 'इंडियन ओपिनियन' का इतने चित्रोंसे सुसज्जित इतना महत्वपूर्ण यह विशेषांक न निकल पाता । 'इंडियन ओपिनियन' बिना किसी दिखावेके, विनीत भावसे पिछले ग्यारह वर्षों के दौरान मेरे देशवासियों और दक्षिण आफ्रिकाकी सेवाका प्रयत्न करता रहा है, और एक ऐसे कालमें जो उसका सबसे नाजुक दौर रहा है; शायद आगे कभी उसे ऐसे कालसे नहीं गुजरना पड़ेगा। 'पैसिव रेजिस्टेंस' इसी कालमें शुरू हुआ, आगे बढ़ा और उसने सारे सँसारका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। भारतीय समाजके पिछले आठ वर्षोंके संघर्ष के लिए यह शब्द उपयुक्त नहीं। भारतीय भाषामें इसे "सत्याग्रह" कहते हैं। मेरा खयाल है कि टॉल्स्टॉयन इसे आत्मिक-बल या प्रेम-बल भी कहा है, और यह है भी वही। अपनी विशुद्धतम अवस्था में यह बल आर्थिक या अन्य किसी भी प्रकारकी भौतिक सहायताकी अपेक्षा नहीं रखता और अपनी प्रारम्भिक अवस्थामें भी यह निश्चय हो शारीरिक बल अथवा हिंसासे अलग रहता है। हिंसा तो वास्तव में इस महान् आत्मिक बलका अभावात्मक पक्ष है। वे ही लोग इस बलको अपने में पैदा कर सकते और इसका उपयोग कर सकते हैं जो हिंसाको बिलकुल ही त्याग दें। इस बलका उपयोग एक व्यक्ति भी कर सकता है और समाज भी। इसे राजनीतिके क्षेत्र में भी उतना ही प्रयुक्त किया जा सकता है जितना घरेलू मामलों में इस बलकी सार्व- भौमिकता इसका स्थायित्व और इसकी अजेयता सिद्ध करती है। पुरुष, स्त्रियाँ और बच्चे सभी समान रूपसे इसका उपयोग कर सकते हैं। यह कहना बिलकुल गलत है कि इसका प्रयोग केवल निर्बल लोग ही करते हैं और सो भी तबतक जबतक वे हिंसाका जवाब हिंसासे देनेके योग्य नहीं हो पाते। इस भ्रान्तिकी जड़में अंग्रेजी भाषाके [इसके समानार्थी] शब्दके अर्थकी अपूर्णता ही है। सत्याग्रह वे लोग कर ही नहीं सकते जो पशु बलका उपयोग करनेकी दिशा में अपन-आपको कमजोर समझकर इसे अपनाना चाहते हैं। सफल सत्याग्रही वही बन सकता है जो यह महसूस कर ले कि मनुष्यमें कुछ ऐसा बल है जो उसकी पशु-प्रवृत्तिसे कहीं श्रेष्ठ है और जिसके आगे पशु-प्रवृत्ति सदा ही घुटने टेक देती है। इस बलका हिंसासे और इसीलिए सभी प्रकारके उत्पीड़नसे वही सम्बन्ध है जो प्रकाशका अन्धकारसे है। राजनीतिके क्षेत्र में इस बलका उपयोग इस सनातन सिद्धान्तपर आधारित है कि जनताकी सरकार तभी तक सम्भव है, जबतक जनता जाने या अन-

१. गांधीजी ११ जुलाईको फीनिक्ससे भारतके लिए रवाना हुए थे।