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३५८. भाषण : प्रिटोरियाके विदाई समारोहमें

जुलाई १०, १९१४

अभिनन्दनपत्रों और भाषणोंका जवाब देते हुए श्री गांधीने पहले श्री स्टेन्ट द्वारा सभाका सभापतित्व करनेपर खुशी प्रकट की और कहा कि श्री स्टेन्ट सदा हमारे पक्षकी हिमायत करते रहे। मैं व्यक्तिगत रूपसे अपनेको उनका आभारी मानता हूँ। श्री चैमनके प्रति भी श्री गांधीने वैसे ही भाव प्रकट किये जैसे चैमनेने किये और कहा कि मैं श्री चैमने और उनके कार्यालय के प्रबन्धका विरोध जरूर करता था परन्तु मेरे दिलमें श्री चॅमनके प्रति कभी दुर्भाव नहीं रहा। श्री चैमने भी मेरे साथ अत्यन्त सौजन्य- पूर्वक पेश आते थे। जब मैं दो हजार स्त्री-पुरुषोंको लेकर कूच कर रहा था, तब मुझे गिरफ्तार करने के लिए श्री चैमने केवल एक आदमीको साथ लेकर गये थे । इसे मैं अपने प्रति श्री चैमनेका सम्मान मानता हूँ; क्योंकि इससे प्रकट होता था कि एक सत्याग्रहीके रूपमें श्री चैमने मुझमें कितना विश्वास करते थे। श्री गांधीने अपनेको भेंट की गई थैलीके लिए उपस्थित सज्जनोंको धन्यवाद देते हुए कहा कि दूसरी थैलियोंको भाँति इसका उपयोग भी मैं खुद अपने लिए नहीं बल्कि प्रथमतः दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए भारतीयोंकी सेवामें और फिर भारतमें जाकर मैं जो कार्य करूंगा और जिसके प्रति परस्पर बातचीतमें हमने अपनी रुचि प्रकट की है, उसमें करूंगा। श्री गांधीकी राय थी कि जो समझौता हुआ है वह एक तरहका अधिकारपत्र (मैग्ना कार्टा) ही है। यह समझौता अन्तिम समझौता नहीं कहा जा सकता, इसका यह अर्थ नहीं है कि इसके हो जाने से अब भारतीयोंके सब दुःख मिट चुके । इन दुःखोंको दूर करनेके लिए तो धीरजसे काम लेना होगा और यूरोपीय लोकमतको शिक्षित करना होगा, और हमें स्वयं इस प्रकार रहना होगा कि श्री स्टेन्ट-जैसे सज्जनोंके हृदयोंमें जो सहानुभूति है, वह बनी रहे । कुमारी श्लेसिनने भारतीयोंके हितार्थ जो काम किया उसके लिए श्री गांधीने उनकी प्रशंसा की।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २९-७-१९१४