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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सेवा द्वारा दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए अपने प्रत्येक देशवासीसे शाबाशीकी ट्रॉफी प्राप्त करके एक सुन्दर उदाहरण पेश करेंगे। और जिस प्रकार इन विद्यालयोंने इस समय दौड़ोंमें भाग लिया है और उनमें अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी है, इसी प्रकार मुझे आशा है यह मण्डल भी करेगा। मेरी समझमें जिस योग्यतासे आजकी कार्यवाहीका संचालन किया गया और व्यवस्था की गई उसीसे यह प्रकट हो जाता है कि आप आगे किस प्रकार काम करेंगे। मेरा खयाल है कि भविष्यमें सारा भार आप ही के कन्धोंपर पड़नेवाला है। और इसमें पहलेकी भाँति अब भी रुस्तमजी ही आपके नेता रहनेवाले हैं। और अब वो शब्द रुस्तमजीके विषयमें भी कहूँगा। श्री रुस्तमजी मेरे मित्र, मुवक्किल तथा फीनिक्स आश्रमके ट्रस्टी रहे हैं, इतना होते हुए भी मैं उनकी सेवाओंकी प्रशंसा करना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ कि इस विदाई समारोहमें रुस्तमजीने बहुत ही अधिक परिश्रम किया है। मुझे आशा है कि रुस्तमजीका इतना काम करनेका कारण यह नहीं है कि उनका एक मित्र दक्षिण आफ्रिका छोड़कर जा रहा है। बल्कि इसके द्वारा वे दिखा देना चाहते हैं कि भविष्य में दक्षिण आफ्रिकामें किस प्रकार काम करने की जरूरत है, दिखा देना चाहते हैं कि दक्षिण आफ्रिकाका और दक्षिण आफ्रिका के भारतीयोंका गौरव अपनी मातृभूमिके गौरवको बनाये रखनेमें है। अपने उत्साहसे और इस प्रकारकी सब हलचलोंमें हाथ बँटा कर श्री रुस्तमजीने यह भी बता दिया कि भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकामें क्या क्या करना है। श्री गांधीने कहा, यह भी जानता हूँ कि कभी-कभी रुस्तमजीको राजी करना बहुत मुश्किल हो जाता है। परन्तु में यह भी जानता हूँ कि यदि एक बार आप रुस्तमजीको राजी कर लें तो फिर उनके समान काबिल और एकनिष्ठ दूसरा नेता समस्त दक्षिण आफ्रिकामें नहीं मिल सकेगा। रुस्तमजी जाति और धर्मके भेदको जानते ही नहीं। वे पारसियोंमें पारसी हैं। परन्तु मुसलमानों में मुसलमान भी हैं। क्योंकि वे मुसलमानोंके लिए जीने और मरनेके लिए भी तैयार रहते हैं। इसी प्रकार वे हिन्दुओंमें हिन्दू भी हैं और उनके लिए भी यह सब कुछ करनेके लिए तैयार रहते हैं। यों दक्षिण आफ्रिकामें में कई आदमियोंके नाम गिना सकता हूँ जो अनेक बातोंमें रुस्तमजीकी बराबरी कर सकते हैं और किसी- किसी बातमें उनसे बढ़कर भी हैं। परन्तु साहस और एकनिष्ठतामें उनतक कोई नहीं पहुँच सकता। इसलिए डर्बनका बन्दरगाह छोड़ने से पहले अपने अन्तिम सन्देशके रूपमें मैं ये शब्द छोड़ जाना चाहता हूँ कि अगर सार्वजनिक सेवाके रूपमें भारतीय कौम कोई काम करना चाहती है तो वह रुस्तमजीपर भरोसा करे। परन्तु इसके साथ ही वह रुस्तमजीकी आज्ञाका पालन भी करे । और अगर आप रुस्तमजीपर भरोसा करते हैं तो उनके दोषोंको भी दर-गुजर कर दें। संसारमें ऐसा कौन है जिसमें कोई-न-कोई दोष नहीं है ? सूर्य और चन्द्रमामें भी दाग हैं। केवल ईश्वर ही निष्कलंक है। कोई भी मनुष्य पूर्णतः निर्दोष नहीं हो सकता। अपने दोषोंकी चिन्ता रुस्तमजी खुद कर लेंगे। भारतीय तो उनके गुणोंका ध्यान रखें। आप सब जानते हैं कि उस महान हड़तालमें उन्होंने आपके लिए कितना काम किया है। अन्तमें श्री गांधीने श्रोताओंसे अपने लिए परमात्मासे प्रार्थना करनेकी विनती की, उनके स्नेहकी माँग की और अच्छे-अच्छे समाचार भेजते