सचमुच वे बहुत अच्छे होते हैं। परन्तु आज मैं इन खेलोंके बारेमें नहीं, जीवनके असली खेलके बारे में कुछ कहूँगा । इनामके लिए तुमने दौड़ आदिमें भाग लिया। परन्तु जैसा कि अभी श्री बेलोने कहा, इनामोंका असर शिक्षण देनेवालोंपर तथा स्वयं बच्चोंपर भी अच्छा नहीं होता। मैं भी ऐसा ही समझता हूँ। परन्तु आज यदि तुमने दौड़ोंमें यह बतानेके लिए भाग लिया हो कि इन दौड़ोंके पीछे एक उद्देश्य है - यह कि पिछले कुछ वर्षोंसे तुम इस यत्नमें हो कि अपने शरीरको अच्छी -- काम करने योग्य - --स्थितिमें रखना चाहते हो, तो इससे उद्योग करनेका महत्व सिद्ध होता है; और एक निश्चित ध्येय के लिए अनुशासनबद्ध रीतिसे अमुक समय तक लगातार एकाग्रतापूर्वक काम करना अपने आपमें एक अच्छी चीज है। परन्तु जीवनमें बच्चोंके लिए और खुद मेरे लिए एक और भी अच्छी दौड़ है। क्या तुम जानते हो कि वह क्या है ? जो बच्चे ईसाई हैं वे अगर गिरजाघरोंमें जाते हैं अथवा जो बच्चे हिन्दू हैं और यहाँ उन्हें यह बताने के लिए कुछ ऐसे हिन्दू हों कि उनका धर्म क्या कहता है, और इसी प्रकार जो बच्चे मुसलमान हैं और उनके धर्मकी शिक्षा देनेवाले कोई मौलवी हों तो मुझे निश्चय है कि ये सब उन्हें यही बतायेंगे कि जीवन एक दौड़ है जिसमें उन्हें अच्छे उतरनेकी तैयारी करनी है और बड़े होनेपर पुरुषोचित्त और स्त्रियोचित्त काम करने हैं। श्री गांधीने कहा, चूँकि मैं खुद कुछ वर्ष तक शिक्षण देता रहा हूँ इसलिए में शिक्षकोंसे भी दो शब्द कहना चाहूँगा। मेरा खयाल है कि सच्ची शिक्षा इसमें नहीं है कि आप बच्चोंको अक्षरोंका ज्ञान करा वें। सच्ची शिक्षा तो बच्चोंके चरित्र-निर्माणमें है। जबतक बच्चे छोटे होते हैं और उनकी बुद्धि कोमल होती है तभी तक उन्हें इच्छानुसार मोड़ा या ढाला जा सकता है। इसलिए शिक्षक यदि इसी उम्र में बच्चोंको समझा दें कि जीवनमें चरित्र ही सबसे पहली, और आखिरी वस्तु है और यह कि अक्षर-ज्ञान तो चरित्र गठनका साधन मात्र है, तो मैं शिक्षकों और बच्चों दोनोंका पाठशालाओं में जाना सार्थक समलूंगा और माता-पिताओंका भी ऐसी शालाओं में बच्चोंको भेजना उचित मानूँगा। परन्तु अगर माता-पिता बच्चोंको केवल अक्षर-ज्ञान लेनेके लिए पाठशालाओंमें भेजें और बच्चे भी वहाँ केवल इसीलिए जायें कि पढ़-लिखकर वे भविष्य में किसी-न-किसी प्रकार कुछ अधिक द्रव्य कमा लेंगे तो मेरी समझमें वह शिक्षा सच्ची शिक्षा नहीं होगी। मुझे लगा कि आज यह छोटीसी बात में सबसे कह दूँ।
श्री गांधीने कहा, थोड़ी ही देर बाद बच्चोंको इनाम मिलनेवाले हैं। किन्तु मुझे बताया गया है कि नेटाल प्रान्तके क्रीड़ा-मण्डल (स्पोटिंग एसोसिएशन) को श्री रुस्तमजीकी तरफसे पुरस्कार देनेके लिए एक घूमनेवाली "ट्रॉफी" मिलनेवाली है। मैं समझता हूँ कि यह ट्रॉफी अपने आपमें भी कोई साधारण मूल्यकी वस्तु नहीं है। इसकी कीमत ३० पौण्ड है। मुझे आशा है कि नेटालका क्रीड़ा-मण्डल इस भेंटका पात्र होगा। परन्तु इस ट्रॉफोका जिक्र में इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि वह एक कीमती चीज है। मुझे उम्मीद है कि नेटालका क्रीड़ा-मण्डल सारे काम खिलाड़ीकी भावनासे करेगा, और जीवनके सच्चे खेलों और दौड़ोंमें इन बच्चोंके सामने एक उदात्त उदाहरण पेश करेगा। इसी प्रकार ये लड़के और लड़कियाँ भी जो यहाँ एकत्र हुए हैं, अकेले एक रुस्तमजीसे ट्रॉफी प्राप्त करके नहीं, बल्कि अपने आपको क्रीड़ाकी भावनासे समर्पित करके अपनी