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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

प्रकार दूसरे समाजके व्यक्तिको भी सम्मान दिया जाना चाहिए। यदि प्रत्येक भारतीय इस प्रकार मिल-जुलकर रहेगा तो दक्षिण आफ्रिकामें हमारी स्थितिमें बड़ी प्रगति होगी इसमें शंकाकी तनिक भी गुंजाइश नहीं है।

मुझे अभी जो सम्मान यहाँ दिया गया है उस सम्बन्धमें मुझे इतना ही कहना है कि मुझे जब-जब सम्मान प्राप्त हुआ है तब-तब मैंने अपने भीतर किसी कमजोरीका अनुभव किया है और जब-जब मुझपर मार पड़ी है तब-तब मैंने अपनेमें एक विशेष बलका अनुभव किया है, मैं आगे बढ़ सका हूँ और सुदृढ़ बना हूँ । अतः वे लोग जो आज मेरे विरुद्ध बात करते हैं वे वास्तव में मेरे हितैषी हैं। वैसे मैं तो अपना सच्चा सम्मान तब मानूंगा जब प्रत्येक भारतीय बन्धु सत्याग्रही बनेगा।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १५-७-१९१४

३५६. भाषण : खेल-कूद समारोह में'

डर्बन

[जुलाई ९, १९१४]

श्री गांधीने कहा कि बच्चोंके खेलोंका यह आयोजन करने, इसके लिए आजका पूरा दिन रखने और इतना कम समय होनेपर भी उन्हें एकत्र कर लेनेके लिए में विदाई- समितिका बहुत आभारी हूँ। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि नगरके टाउन हॉलमें जो दूसरा समारोह किया गया था मुझे उससे इतनी प्रसन्नता नहीं हुई। उस समारोहमें मुझे कोई विशेष रस नहीं मिला; किन्तु तीसरे पहरके ये खेल आदिके कार्यक्रम मेरे मनमें सदा दक्षिण आफ्रिका निवासकी कुछ मधुर स्मृतियोंमें से एक बनकर रहेंगे। श्री गांधीने कहा, मैं दक्षिण आफ्रिकाके समाजको जानता हूँ, परन्तु भारतके समाजको नहीं जानता। अगर कोई मुझसे पूछे कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंका मन किसी खास मौकेपर किस तरहसे काम करेगा तो मुझे निश्चय है कि में सही तौरपर वह बात बता सकता हूँ। परन्तु स्वयं भारतमें भारतीयोंका मन अमुक अवसरपर कब किस तरह काम करेगा इसका मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं है। इतना अधिक में अपने दक्षिण आफ्रिकावासी भाइयोंको जानता हूँ। इसलिए आज दक्षिण आफ्रिका, अपने प्यारे देशभाइयों, बच्चों और बच्चियोंसे विदा लेते समय सबको एकत्र देखकर मुझे बहुत खुशी हुई है। इसके बाद श्री गांधीने बच्चों को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा, आज तुम लोग खेल खेलनेके लिए आये हो । खेल अच्छे होते हैं। और अगर तुम इनका अर्थ--हेतु-- जान लो तो

१. गांधीजीने डर्बनके एल्बर्ट पार्क में आयोजित बच्चोंके एक समारोह में भाषण किया था; समारोहकी संक्षिप्त रिपोर्ट १५-७-१९१४ के इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुई थी।

२. देखिए " भाषण: विदाई सभामें ", पृष्ठ ४३५-३७ ।