अध्ययन करें। अन्तमें उन्होंने उपस्थित लोगोंमें से कुछसे मातृभूमिमें मिलनेकी आशा व्यक्त करके अपना भाषण समाप्त किया।
[ अंग्रेजींसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-७-१९१४
३५५. भाषण : गुजराती सभाके उत्सवमें
[ डर्बन
जुलाई, ९, १९१४]
समय ज्यादा नहीं है, अतः मुझे दो शब्द उन भारतीय नवयुवकोंसे कहने हैं जो दक्षिण आफ्रिकामें ही पैदा हुए हैं। सत्याग्रह संघर्ष में प्रधान भाग यहीं जन्मे भारतीयोंने लिया है और उनमें भी गरीब और सर्व-साधारण लोगोंने ही अधिक सेवा की है। श्रीमन्त लोग तो और अधिक धनवान बननेकी धुनमें व्यस्त रहे । मेरे स्वर्गीय भाई नाग- प्पन और बहन वलिअम्मा यहीं पैदा हुए थे। भाई नारायणसामी भी यहीं पैदा हुआ था। मैं आप सबसे उनके कदमोंपर चलनेकी प्रार्थना करता हूँ। मैं आपको यह सलाह भी देता हूँ कि आपको चाहे जैसी मुसीबतें उठानी पड़ें आप भारतकी यात्रा अवश्य करें।
आप सब भाइयोंने जो मान और प्रेम हम दोनोंके लिए व्यक्त किया है, इसके लिए मैं आपका उपकार मानता हूँ। जब कभी.मुझे सम्मान दिया जाता है तभी मेरी आत्मा एक प्रकारके भयका अनुभव करती जान पड़ती है। और जब-जब मुझपर मार पड़ी है और मेरा अपमान हुआ है, तब-तब मुझे अपनी भूलोंका ज्ञान हुआ है और नया ज्ञान मिला है। पर अब तो मेरी मनःस्थिति कुछ ऐसी हो गई है कि प्रशंसासे मुझमें कोई विकार पैदा नहीं हो सकता है। आप लोगोंसे विदा होते हुए मुझे बड़ा दुःख हो रहा है; परन्तु देर-सबेर जुदा तो होना ही था । मैं अब भोग-भूमिसे कर्म-भूमिमें जा रहा हूँ। मेरी मुक्ति भारतको छोड़कर अन्य भूमिमें नहीं है। यदि मोक्षकी इच्छा हो तो मनुष्यको भारत भूमिमें जाना ही चाहिए। मेरी ही तरह प्रत्येकके लिए भारत भूमि दुखियोंका 'विश्राम स्थान' है और इसीलिए स्वदेश जानेके लिए मैं इतना उत्सुक हूँ। जाते-जाते मैं आप सबसे विनयपूर्वक कहता हूँ कि आप प्रत्येक मनुष्य के साथ प्रेमका बरताव करें, फिर चाहे वह किसी भी समाजका या धर्मका क्यों न हो।
मैं आज तक हिन्दू और मुसलमान दोनोंको एक-जैसा सम्मान देता आया हूँ। हिन्दू धर्मकी सीख भी यही है। और यदि ऐसा करनेके कारण कोई कह बैठे कि मैं तो हिन्दू नहीं हूँ तो मैं उसके विरुद्ध सत्याग्रह करूंगा। मैं बड़े विश्वासके साथ कहता हूँ कि यहाँ मुझसे बढ़कर कोई हिन्दू नहीं हो सकता शायद मेरी बराबरीका भी न हो। हमारे घर जब कोई आता है तो हम उसका आदर-सत्कार करते हैं, ठीक उसी
१. विक्टोरिया स्ट्रीटमें स्थित हिन्दू धर्मशालामें गुजरातियोंकी सभा द्वारा गांधीजीकी विदाईका आयोजन किया गया था। गांधीजी पहले अंग्रेजीमें और फिर गुजराती में बोले थे।