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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पूछताछ की जाती है और अँगूठा निशानी ठीक सिद्ध होनेपर भी लोगोंको झूठा करार दिया जाकर निकाल दिया जाता है---यह सब अब नहीं होगा। जो लोग अँगूठा निशानी सही सिद्ध कर सकेंगे उनके हक सुरक्षित रह सकेंगे। परन्तु कानूनकी इस धाराका अर्थ यह नहीं होगा कि एक मनुष्य जो अनेक वर्षों तक नेटालसे बाहर रहा है वह केवल प्रमाणपत्रके आवारपर बच जायेगा। यह तो प्रत्येक व्यक्तिको सिद्ध करना होगा कि वह इस मुल्कको सदाके लिए नहीं छोड़ चुका था।

अमली राहत

ऐसी राहतोंके सम्बन्ध में जो कानूनकी सीमासे बाहर हैं - श्री गांधी और सरकारके बीच पत्र-व्यवहार हुआ है। उसीसे तत्सम्बन्धी जानकारी मिल सकती है। इनमें दक्षिण आफ्रिकी भारतीय, फ्री स्टेट तथा मौजूदा कानूनोंके अमली स्वरूपका समावेश होता है। हमें यहाँ इनमें से एककी ही चर्चा अभीष्ट है। चूंकि सरकार इस बातके लिए वचनबद्ध है कि प्रचलित कानूनोंका न्यायपूर्वक अमल हमारे मौजूदा हकोंको सुरक्षित रखते हुए ही होगा, अतः जहाँ-जहाँ अन्याय हो [भारतीय ] समाजके लिए राहत पाना सम्भव होगा। हमारा विश्वास है कि यह धारा भविष्य में अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होगी। परन्तु इसकी उपयोगिता समाजके नेताओंके कर्त्तव्यपर अवलम्बित है। यदि वे सोते रहे तो इस धाराका होना-न-होना समान ही है। जिन कानूनोंका अधिक से अधिक ध्यान रखना है वे दो हैं: एक तो सारे प्रान्तोंसे सम्बन्ध रखनेवाला परवाना-कानून और दूसरा ट्रान्सवालका स्वर्ण-कानून। श्रीगांधीने अपने पत्रमें यह भी कहा है कि इन कानूनों में परिवर्तन करवाने के लिए निकट भविष्यमें आन्दोलन करना होगा। ऐसा आन्दोलन करते समय समाजको कानूनके अमली स्वरूपका बड़ा खयाल रखना होगा और यदि समाजने इतना किया तो फिलहाल शान्ति बनी रहेगी।

हमें यह तो स्वीकार करना ही चाहिए कि सरकारने इस बार न्याय बुद्धिसे काम लिया है। संसद्के प्रमुख सदस्योंने भी अपने भाषणों में न्यायवृत्तिका ही परिचय दिया है और मन्त्रियों और खासतौरसे जनरल स्मट्सके भाषणसे यह जान पड़ता है कि उनका रुख भी आगे न्याय करनेका ही है। हम कौमको आगाह करना चाहते हैं कि वह इस रुखका लाभ उठानेका प्रयत्न करे और ऐसा लाभ तभी मिल सकता है जब समाज में संगठन, बहादुरी और सच्चाई हो।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ८-७-१९१४