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संघर्षकी समाप्ति

जाना चाहिए, परन्तु उन्होंने इससे कुछ दूसरा ही निर्णय दिया और कहा कि यद्यपि ईसाई आदि वर्मोके अनुसार एक औरतसे शादी कानूनसम्मत है तथापि हिन्दू और मुसल- मान धर्मके एक पत्नी विवाहको भी मान्यता नहीं दी जा सकती। इसमें तो उपर्युक्त धर्मोका सरासर अपमान है। इसलिए श्री काछलियाने कानूनमें परिवर्तनकी माँग की। और वह अब मंजूर हो गई है। इस कानूनसे अन्य किसी प्रकारकी तबदीली नहीं होती। तलाक, वारिसी हक और एकाधिक पत्नियोंके प्रश्नकी स्थितितो पूर्ववत् ही रहेगी। इस कानूनसे मृत पत्नीकी सन्तानका बचाव भी अवश्य होता है। यह कानून ऐच्छिक है । किसीको कानूनन अपनी शादीका पंजीयन करवाना आवश्यक नहीं है। और जो भारतसे आते हैं उनके लिए तो शादीके पंजीयनका प्रश्न ही नहीं उठता। शादी पंजीयित कर- वानेका मुख्य हेतु तो यह था कि बच्चोंके लिए किसी बातमें अड़चन पैदा न हो । और अब जब कि यह अड़चन दूर हो चुकी है, किसी भी भारतीयको शादीका पंजीयन करवाना जरूरी नहीं है। इतना ही नहीं, हमारी तो यह सलाह है कि पंजीयन न कर- वाया जाये। कानून बनना आवश्यक था। इसके बिना [हमारे] धर्मोका जो अपमान हो रहा था उसका प्रतिकार किया जाना आवश्यक था। हमें यह इतना मिल सका, यही काफी है। कानूनकी रचना कुछ इस प्रकार हुई है कि विवाहका पंजीयन बिना कर वाये ही बच्चोंको संरक्षण मिल जाता है। और इसमें एक या दो स्त्रियोंसे विवाहका प्रश्न ही नहीं उठ पाता । और इतना तो निश्चित है कि यदि कोई व्यक्ति एकाधिक विवाह करनेका इरादा करता हो उसे तो अपने एक पत्नी विवाहका पंजीयन नहीं करवाना चाहिए। इस सम्बन्धमें हमें केवल ऐसा अधिकार चाहिए था कि उसके आधार- पर हमारे वर्मगुरु ही विवाह पंजीयन करनेवाले अधिकारी नियुक्त हो सकें। पर हम इस अधिकारको अमल में लानेकी सलाह नहीं देना चाहते। हमारी मान्यता है कि ऐसी नियुक्तियोंके परिणामस्वरूप समाजमें धोखेबाजी फैलेगी और हमारे धर्मगुरु प्रलोभनोंमें पड़ जायेंगे। फिर जो शादियाँ हो चुकी हैं उनके लिए तो इन नियुक्तियोंकी आव- श्यकता ही नहीं रहती; क्योंकि कोई भी व्यक्ति मजिस्ट्रेटके पास जाकर अपने विवाहका पंजीयन करवा सकता है। यही नियम भविष्य में होनेवाले विवाहोंपर भी लागू होता है। अर्थात् शादी हम किसी भी मौलवी या धर्मगुरुकी मारफत करवायें और जब इच्छा हो तब मजिस्ट्रेटके पास जाकर उसका पंजीयन करवा लें। इस तरह समाजसे हमारा आग्रहपूर्वक यह कहना है कि वह शादीके लिए विशेष अधिकारी नियुक्त करवानेकी पंचायतमें न पड़े। इस प्रश्नका उपसंहार करने से पूर्व हम यह भी कहना चाहते हैं कि इस सम्बन्धमें यहाँ जिस प्रकारका कानून बना है वैसा अन्य किसी उपनिवेशमें नहीं है। मॉरिशसमें एक या एकाधिक भारतीय विवाह जायज माने जाते हैं ऐसा सुनने में आया है; परन्तु वहाँ भी ऐसा नहीं है और न वहाँका कानून यहाँ की तरह अच्छा ही है। यह बात हम इसी अंकमें अन्यत्र बता ही चुके हैं।

इस कानून द्वारा जो तीसरा प्रश्न हल हो पाया है वह यह है कि यदि किसी नेटाल निवासीके अधिवास प्रमाणपत्रके सम्बन्ध में कभी कोई प्रश्न उठ खड़ा हो और उक्त पासकी अँगूठा-निशानी यदि प्रवासी अधिकारीकी दफ्तरी नकलसे मिलती हो तो उक्त पास अधिकृत माना जायेगा। इसका परिणाम यह होगा कि आज जिस प्रकार व्यर्थकी