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संघर्षकी समाप्ति

कर सक, तो समझना चाहिए कि उसने हमें विधेयक तथा प्रशासकीय कार्रवाइयोंके अलावा और भी बहुत कुछ दिया है।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ८-७-१९१४

३५२. संघर्षकी समाप्ति

जो संघर्ष पिछले ८ वर्षोंसे चलता आ रहा था उसका अन्त हो गया और हमारी यह मान्यता है कि इस युगके दूसरे किसी संघर्षका शायद ही ऐसा सुन्दर समापन हुआ हो। संघर्षका श्रीगणेश सन् १९०६ के सितम्बर मासमें जोहानिसबर्ग में हुआ था। उस समय तो प्रश्न केवल पंजीयन सम्बन्धी कानूनका था। सरकारने हमारी पुकार नहीं सुनी; इसपर जेल जाना शुरू हो गया और अभी यह संघर्ष पूरा भी नहीं हो पाया था कि इसी बीच प्रवासी कानून पास कर दिया गया। कुछ शर्तोंके साथ समझौता हो गया। पर जिन शर्तोंका पालन सरकारको करना था उन्हें उसने तोड़ा। संघर्ष पुनः छिड़ गया और चूंकि प्रवासी कानूनका असर पंजीयन कानूनपर भी पड़ता था, अतः वह मुद्दा भी संघर्ष में जोड़ दिया गया। प्रवासी कानूनमें रंग-भेदको स्थान न रहे यह विशेष प्रश्न इसी कारण उठ खड़ा हुआ। और इससे स्वाभाविक ही हमारी भावनाएँ तीव्र हो उठीं। संघर्ष लम्बा हो चला, दूसरा शिष्टमण्डल विलायत गया, परन्तु संघ-सरकारने रंगभेदको दूर करनेसे साफ इनकार कर दिया। संघर्षकी अवधि खिंचती तो रही पर १९११ में एक कच्चा समझौता हुआ। इसमें एक तीसरी माँग पूरी की गई थी। चूंकि ट्रान्सवाल द्वारा गढ़ा गया कानून संघ संसद ही बदल सकती है अतः सत्याग्रहियोंका कहना था कि हम ऐसे किसी कानूनको स्वीकार नहीं कर सकते जो हमारी माँगें तो पूरी करता है किन्तु जिसके कारण दूसरोंके हक मारे जाते हों। इसलिए १९११ के अस्थायी समझौते में यह शर्त शामिल की गई कि संघ राज्यके समस्त भारतीयोंके मौजूदा हकोंको किसी प्रकारकी हानि न पहुँचने पाये। परन्तु सन् १९१३ तक कोई निर्णय नहीं हो पाया। इसी बीच माननीय श्री गोखले पधारे। सरकारने उन्हें वचन दिया कि तीन पौंडी कर हटा दिया जायेगा। फिर भी यदि सन् १९१३ में, जब सत्याग्रहको माँगोंका निबटारा किया जानेको था, सरकार उक्त सारी माँगें पूरी कर देती तो संघर्ष पुनः शुरू नहीं होता, और तीन पौण्डी करकी बात- पर अलगसे विचार होता रह सकता था।

इस समय न्यायमूर्ति सर्लके फैसलेके कारण वैध-विवाहका प्रश्न भी उठ खड़ा हुआ। उससे भी प्राप्त अधिकारोंका हनन होता था। सन् १९१३ में हमारे विरोधके बावजूद स्वर्गीय श्री फिशरने प्रवासी कानून पास कर दिया। उसमें हमें बहुत कुछ मिला और थोड़ा-बहुत रह भी गया; किन्तु विवाह सम्बन्धी समस्या न सुलझ पाई और कुछ दूसरे

१. शिष्टमण्डल १९०९ में विलायत गया; देखिए खण्ड ९ ।