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३५०. भाषण : विदाई-सभामें'

डर्बन

जुलाई ८, १९१४

धन्यवादका उत्तर देते हुए श्री गांधीने पहले बताया कि वे शोकसूचक वेशमें क्यों उपस्थित हुए। यह वेश उन्होंने हड़तालके समयसे ही धारण कर रखा था । उन्होंने आशा प्रकट की कि उपस्थित सज्जन वह विचित्र वेश पहन कर सभामें आनेके लिए उन्हें क्षमा करेंगे। उन्होंने कहा, अपनी सजाकी अवधि समाप्त होनेसे पहले छोड़ दिये जानेपर शोक-चिह्न के रूप में मैंने यह पहनावा शुरू किया था। वह शोक तो अब नहीं रहा। परन्तु फिर भी मैंने इस वेशको कायम रखा है। आज मुझे साधारणतया उस पोषाकमें आना था जो शामको धारण की जाती है। परन्तु मुझे लगा कि इस समय मेरे मनकी जो अवस्था है उसमें यदि दूसरा वेश पहनूं तो उससे उपस्थित लोगों- के प्रति कोई अधिक आदर प्रकट नहीं होगा। (हर्ष-ध्वनि) | भेंट किये गये मानपत्रोंका उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, इन मानपत्रोंको में बहुत मूल्यवान मानता हूँ। परन्तु मेरी दृष्टि में इन मानपत्रोंसे भी अधिक मूल्यवान वह प्रेम और सहानुभूति है, जो इनमें प्रकट की गई है। मैं नहीं जानता कि में कभी इस प्रेमका उचित मुआवजा भी चुका सकूँगा या नहीं। मेरी जो प्रशंसा की गई है मैं उसका पात्र नहीं हूँ। मेरी पत्नी भी नहीं मानतीं कि उनके बारेमें जो कुछ कहा गया है वे उसकी पात्र हैं। बहुत-सी भार- तीय स्त्रियोंने लड़ाईमें श्रीमती गांधीकी अपेक्षा अधिक सेवा की है। श्री कैलेनबैक मेरे भाईके समान हैं। अतः मानपत्रके लिए उनकी तरफसे भी मैं कौमको धन्यवाद देता हूँ। समाजन कैलेनबैकके गुणोंका सम्मान करके बड़ा अच्छा किया है। श्री कैलेनबैक खुद लाभान्वित होनेकी वृष्टिसे लड़ाईमें शरीक हुए थे। श्री कैलेनबैक मानते हैं कि भारतीयोंका पक्ष लेकर वस्तुतः सच्चे अर्थोंमें स्वयं उन्हें बहुत लाभ हुआ है। न्यू कैंसिलकी हड़तालके दिनोंमें श्री कैलेनबँकने बड़ा शानदार काम किया था और जब

१. गांधीजी, कस्तूरबा और कैलेनबैंक द्वारा इंग्लैंड होते हुए भारतके लिए प्रस्थान करनेके अवसर- पर उन्हें विदाई देनेके लिए टाउन हॉलमें एक सभा आयोजित हुई जिसमें बहुत बड़ी संख्या में भारतीयों और यूरोपीयोंने भाग लिया। डर्बनके मेयर श्री डब्ल्यू० होम्सने अध्यक्षता की। कैलेनबैंक सभामें उपस्थित नहीं हो सके, उनका भेजा हुआ धन्यवादका तार पढ़ कर सुनाया गया। समस्त दक्षिण आफ्रिकाकी विभिन्न संस्थाओंकी ओरसे गांधीजोको मानपत्र दिये गये और इसके बाद गांधीजीने भाषण किया। इसकी जो रिपोर्ट नेटाल मर्क्युरीके ९-७-१९१४ के अंक में प्रकाशित हुई उसे इंडियन ओपिनियन की रिपोर्ट से मिला कर यहाँ दिया जा रहा है।

२. नेटाल मर्क्युरोने लिखा: “श्री गांधी हिन्दुओंके शोक-वस्त्रोंमें उपस्थित थे। उन्होंने उस शाम शोक-वस्त्र पहननेका कारण बताते हुए भाषण आरम्भ किया ।"