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११. नया विधेयक

चिर-प्रतीक्षित प्रवासी विधेयक आखिर प्रकाशित कर दिया गया है। इतना तो बिना हिचक कहा जा सकता है कि वह निराशाजनक है, पहले विधेयकसे भी बुरा है और कई महत्त्वपूर्ण बातोंकी दृष्टिसे उसमें अस्थायी समझौता कार्यान्वित नहीं किया गया है। अन्यत्र उन मुद्दोंकी विस्तृत सूची दी गई है,[१] जिनके सम्बन्धमें इस विधेयकसे समझौतेकी पूर्ति नहीं होती। ऐसा है, यह दुःखकी बात है। सरकारने समझौतेकी शर्तोंके पालनका इरादा इतनी बार जाहिर किया है कि जिन्होंने उस समझौतेको तनिक भी समझा है उन्हें यह विधेयक देखकर भारी मानसिक ठेस लगेगी। विधेयकसे इस सन्देहकी पुष्टि होती है कि सरकार हमें उतना ही देना चाहती है जितना दिये बिना गुजारा नहीं। वह उन लोगोंका भी अहित करना चाहती है जिनके अधिकार संघमें स्थापित हो चुके है और वह जैसे-बने-वैसे हमारा सर्वनाश करना चाहती है। इस निर्मम नीतिको कार्यान्वित करने में, अपने इस शानदार विधेयकमें वह भरसक आगे बढ़ी है। यदि यह विधेयक इसी रूपमें कानून बन जाता है तो उससे हमारे कुछ प्रिय वर्तमान अधिकार खत्म हो जायेंगे और हमारी असुरक्षित स्थिति और अधिक असुरक्षित हो जायेगी। विधेयकमें फ्री स्टेटकी कठिनाईको हल करनेके बजाय केवल शाब्दिक जाल ही रचा गया है और वह अनीतिपूर्ण चतुराईमें ट्रान्सवालके प्रवासी कानूनके बिल्कुल समकक्ष है। ट्रान्सवालके प्रवासी कानूनने, जैसा कि हम कई बार कह चुके हैं, एक ऐसा कानूनी जाति-भेद पैदा किया है जिसे ट्रान्सवालके कानूनोंका अच्छा ज्ञान रखनेवाले व्यक्तियोंके सिवा अन्य कोई भाँप भी नहीं पाया। हमें लगता है कि इसी तरह यह विधेयक भी कानूनी जाति-भेदको जन्म देता है और साधारण व्यक्ति इस बातको समझ भी नहीं पाता।

यदि सरकार झुकती नहीं है और विधेयकमें कोई ठोस सुधार नहीं करती तो फिरसे सत्याग्रह और उसके साथ ही सभी पुरानी परेशानियाँ, और तकलीफें प्रारम्भ हुए बिना नहीं रहेंगी। जो घर अभी फिरसे आबाद हुए हैं, वे फिर बरबाद हो जायेंगे। उन सत्याग्रहियोंको, जो फिर अपने सामान्य धन्धोंमें लग गये है, सब कुछ छोड़कर नये सिरेसे दक्षिण आफ्रिकाकी जेलोंमें शाही आतिथ्य स्वीकार करना होगा। हम अब भी आशा करते है कि सरकार राहत देनेका कोई मार्ग निकालेगी। किन्तु यदि वह नहीं निकालती तो हमें कष्ट-सहनमें फिर सुख अनुभव करनेका पाठ सीखना ही होगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-४-१९१३
  1. १.देखिए “विधेयकका परिणाम", पृष्ठ १५-१६ ।