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३४५. भाषण : किम्बर्लेके स्वागत-समारोह में

[जुलाई २, १९१४]

सितम्बर १९०६ में जोहानिसबर्गके गेटी हॉलमें हुई सभाके दिनसे लेकर आजतकको घटनाओंका विवरण देने तथा इस अवधिके दौरान भारतीयोंको जो असह्य कष्ट उठाने पड़े उनका मार्मिक शब्दोंमें वर्णन करनेके बाद श्री गांधीने कहा:

इन [कष्टों] के फलस्वरूप हम देखते हैं कि दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंका दिल पिघल गया है। इस संघर्ष में दुःख उठानेवाली सेनाका मैं तो केवल एक सिपाही ही था। [इसका] असली श्रेय तो उन लोगोंको है जिन्होंने असह्य कष्ट उठाये हैं। श्री कैलेनबैक, श्री पोलक तथा अन्य गोरे मित्रोंने, दुःखकी इस अवधिमें हमारी जो सहायता की है उसके लिए हम उनके भी आभारी हैं।

नये विधेयक के सम्बन्धमें बोलते हुए उन्होंने कहा:

यह स्पष्ट है कि संघ सरकारने इस बार नये विधेयकको विधानसभा तथा सीनेटसे पास करवानेका इस तरहसे प्रयत्न किया है जिससे साम्राज्यीय और भार- तीय सरकारों तथा दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको सन्तोष हो सके। भारतीयोंके समान विनीत कौमके विचारसे, जनरल बोथाके इस कथनको देखते हुए कि यदि "विधेयक" पास न हुआ तो वे त्यागपत्र दे देंगे, कह सकते हैं कि जनरल बोथाने हमारे लिए निःसन्देह अच्छा काम किया है। विरोधी पक्षने भी इसे दलीय राजनीतिका प्रश्न नहीं बल्कि साम्राज्यीय समस्या माना, इसलिए हम उसे धन्यवाद देते हैं। साम्राज्यीय सरकार तथा भारतके नेक वाइसराय लॉर्ड हार्डिज़न हमारी जो सहायता की है, उसके लिए हम उनके कृतज्ञ हैं। श्री गोखलेके नेतृत्वमें भारतकी प्रजाने तथा श्री ऐन्ड्रयजने हमारी जो अमूल्य मदद की है, वह एक दूसरेसे बढ़कर थी और इन्हीं कारणोंसे इतना सुन्दर समझौता सम्पन्न हो सका है। हमें विश्वास है जिस शुद्ध विवेकबुद्धिसे सरकारने हमें न्याय दिया है उसी न्यायबुद्धिसे वह कानूनको अमलमें लायेगी तथा ऐसा होनेपर फिरसे इस संघर्षकी पुनरावृत्ति नहीं होगी। लेकिन मैं अपने भाइयोंसे यह कहनेकी अनुमति चाहता हूँ कि अपने प्रत्येक कष्टको दूर करनेका सबसे पहला उपाय हमारे अपने हाथमें है, और उसके बाद सत्याग्रहका हथियार है। ... गोरे मित्रोंकी पावन स्मृति तथा मेरे देशभाइयोंने मुझे जो स्नेह दिया है, उसे मैं सदा याद रखूंगा।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ८-७-१९१४

१. गांधीजीके सम्मान में बेकन्सफील्ड टाउन हॉलमें एक सभा हुई थी जिसकी अध्यक्षता कौंसिलर टी० प्रॅटलेने की थी। अंग्रेजीमें दिये गये भाषणकी मूल रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है।