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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनको यह मताधिकार भी जरूर मिल जायेगा। परन्तु यह प्रश्न चालू राजनीतिसे सम्बन्ध नहीं रखता। मैं तो अपने देशभाइयोंके लिए इतना ही चाहता हूँ कि हालमें भारतीयोंके लिए जो अधिकार मंजूर किये गये हैं उनके आधारपर उन्हें दक्षिण आफ्रिकाकी जमीन- पर सम्मान और प्रतिष्ठाके साथ रहने दिया जाये।

हम सामाजिक समानताकी कामना नहीं करते, और मैं कहूँगा कि हमारे सामाजिक विकासके पथ भिन्न हैं। हम बार-बार कह चुके हैं कि हम फिलहाल पूर्ण मताधिकारकी माँग नहीं करेंगे। हम जानते हैं कि यहाँपर किस जातिकी प्रधानता है। कालान्तर में जब हम इस योग्य हो जायेंगे तो हमें मताधिकार भी प्राप्त हो जायेगा। किन्तु मैं कहूँगा कि यह प्रश्न व्यावहारिक राजनीतिका नहीं है। ईश्वरकी कृपा है कि अब भारतसे भारतीयोंका और आव्रजन नहीं होगा। इसलिए अब कुल सवाल उस भारतीय आबादीके साथ न्यायपूर्ण और उचित व्यवहारका है जो इस देशमें है। यदि इस आबादीको यहाँ शान्तिपूर्वक रहना है तो उसे कमसे-कम ये हक अवश्य हैं कि उसे पूर्ण शान्ति, सम्मान और गौरवसे रह सकनेका अवसर प्राप्त हो। अगर हम इसके भी हकदार नहीं हैं तो समझमें नहीं आता कि हम किस चीजके हकदार हैं।

[ अंग्रेजीसे ]

नेटाल मर्क्युरी, २९-६-१९१४ और ३०-६-१९१४




१. इसके बाद आगेकी रिपोर्ट पर २९ जूनकी तारीख है और यह ३० जूनके अंकमें प्रकाशित किया गया था। इसके पहले गांधीजीके भाषणके एक भागका निम्न सार दिया गया था: "यह मेरा सौभाग्य है कि मैंने दक्षिण आफ्रिका में यूरोपीय समाज में से कई ऐसे सच्चे साथी और मित्र बनाये जो मेरे लिए भाइयों के समान हैं । सिनेटर मार्शल कैम्बेल-जैसे सच्चे और सज्जन मुझे कहाँ मिलेंगे ? सिनेटर मार्शल कैम्बेलने भारतीयोंकी तकलीफों और दुःखोंमें हाथ बँटाया था। लड़ाईके सबसे ज्यादा खतरनाक दौर में वे सीखने और लाभ उठानेके लिए आये, और निःसन्देह जिसने इस लड़ाई में हिस्सा लिया उसने सीखा और लाभ उठाया। वह हिंसात्मक लड़ाई तो थी ही नहीं। भारतीयोंने सत्याग्रहका उपयोग कभी निर्बलके अस्त्रके रूपमें नहीं किया। हिंसात्मक अस्त्रकी अपेक्षा इस अस्त्रका सदुपयोग करनेके लिए कहीं ज्यादा प्रबल मनोबलकी आवश्यकता थी। विधेयकको पास करनेमें दोनों सदनोंका और भारतीयोंके सभी मित्रोंका जिस भावनाने मार्गदर्शन किया था, यदि उसी भावनासे आगेकी समस्याओंपर विचार किया जाये तो सत्याग्रह पुनः आरम्भ करनेकी कोई आवश्यकता नहीं होगी। आठ वर्षके बाद भारतीयोंको कुछ शान्तिकी आवश्यकता है; और यूरोपीयोंके लिए यह उचित होगा कि वे सहानुभूतिका रवैया अपनायें।

२. इसके बाद श्री कैलनबैकने अपना भाषण दिया।