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३३८. पत्र : गिरमिटिया भारतीयोंको

[ केप टाउन,

जून २२, १९१४ के बाद ]


१८९५ के अधिनियम १७ के अन्तर्गत आनेवाले भारतीयोंसे

मेरे प्यारे भाइयो,

अबतक आप सब लोग यह जान गये होंगे कि तीन-पौंडी कर जो आपको, आपकी स्त्रियों तथा आपके बालिग बच्चोंको प्रतिवर्ष देना पड़ता था, रद हो गया है। कानून पास होनेसे पहले जिन लोगोंपर [सरकारकी] रकम बकाया निकलती है उनसे वह वसूल नहीं की जायेगी। अब आप गिरमिटमें फिरसे बँधनेके बजाय इस प्रान्त में स्वतन्त्रता- पूर्वक रह सकते हैं। १८९५ से पहले आये हुए लोगोंपर १८९१ का जो कानून लागू होता है वही कानून अब आपपर भी लागू होगा। इस स्थितिको लानेके लिए आपने, मैंने और आप-जैसे अन्य सैकड़ों भाइयोंने संघर्ष किया, और उसके कारण दुःख उठाये। लेकिन 'नेटाल मर्क्युरी' ने यह लिखा है कि आपकी स्थिति पहलेसे और भी खराब हो गई है, और अब आपको या तो गिरमिटमें बँधनेको विवश किया जायेगा अथवा नये कानूनकी रूसे वापस हिन्दुस्तान भेज दिया जायेगा। यह बात सच नहीं है। सरकारने अपने एक पत्र में स्पष्ट रूपसे लिखा है कि 'मर्क्युरी' ने कानूनका जो अर्थ किया है वह गलत है। समझौता--साम्राज्यीय सरकार और भारत सरकार -- दो पक्षोंके बीच हुआ है। वे दोनों इसे किस रूपमें समझते हैं, यह मैं जानता हूँ । उन दोनों पक्षोंने ठीक यही समझा है कि करके उठा दिये जानेका अर्थ यह है कि आप स्वतन्त्र [ नाग- रिकोंके रूपमें ] रहेंगे; तथा यदि आप स्वतन्त्र व्यक्तियोंकी हैसियतसे नेटालमें तीन वर्ष तक रहेंगे तो आपको भारतसे आनेवाले स्वतन्त्र भारतीयोंके समान ही अधिवासके अधिकार प्राप्त होंगे। अन्तमें, विशेष रूपसे मैं यह कहना चाहता हूँ कि इस नये कानूनकी रूसे यदि कभी आपको 'नेटाल मर्क्युरी' में लिखे अनुसार निषिद्ध प्रवासी माना जायेगा, तो मैं दुनियाके चाहे किसी भी भागमें क्यों न होऊँ, फिर अपनी सारी शक्ति इस भयंकर अन्यायको दूर करने में लगा दूंगा। लेकिन मुझे विश्वास है, सरकारका ऐसा कोई इरादा नहीं है तथा कानूनका भी वैसा कोई अर्थ नहीं है। मार्शल कैम्बेल भी, जिन्होंने इस तीन पौंडी करको रद कराने की दिशा में कठिन परिश्रम किया है, ऐसा ही कहते हैं। इसलिए इस सम्बन्धमें आपको डरना नहीं चाहिए और मैं उम्मीद करता हूँ कि कोई भी भारतीय उपनिवेशसे बाहर निकाल दिये जानेके डरसे अब फिर गिरमिटमें नहीं बँधेगा।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २९-७-१९१४

१. देखिए पा० टि० २, पृष्ठ ४१७ ।