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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कम हाथ नहीं था। ऐसा जान पड़ता था कि उनकी आत्मा सदनकी कार्रवाइयोंका निरीक्षण और मार्गदर्शन कर रही थी। पर यदि हमने खुद अपनी मदद न की होती, तो इनमें से कोई भी मदद हमें न मिली होती। यह सत्याग्रहकी ही भावना थी जिससे ये तीनों कारण एकत्र हो सके। इसलिए समाजको समझ लेना चाहिए कि संकटके समय उनका अन्तिम अस्त्र सत्याग्रह ही है, जिसकी शक्ति फिर एक बार प्रमाणित हुई है। किन्तु हम आशा करते हैं, और हमारे पास यह विश्वास रखनेका कारण भी है कि अब समाजको कष्टकी उस भयानक आगसे न गुजरना पड़ेगा जिसके बीचसे पिछले तमाम सालोंमें वह गुजरता रहा है।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १९७-६-१९१४

३३७. पत्र : मार्शल कैम्बैलको'

केप टाउन

जून २०, १९१४

प्रिय श्री मार्शल कैम्बेल,

‘केप टाइम्स' के आजके अंकमें भारतीय राहत विधेयकके सम्बन्धमें छपे तारके बारेमें आज सुबह हमारी बातचीत हुई थी। मैंने आज सुबह जो कहा था यहाँ फिर वही दुहराता हूँ : जिस भारतीय प्रचारका तारमें उल्लेख है इसके बारेमें मुझे कोई जान- कारी नहीं है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि किसी भी जिम्मेदार भारतीयने विधेयकपर आपत्ति नहीं की है। मुझे क्षण-भरके लिए भी विश्वास नहीं होता कि यह विधेयक जिन भारतीयोंपर लागू होता है वे निषिद्ध प्रवासी बन जायेंगे - यह तो एक ऐसा परिणाम है कि जिसकी कल्पना तक सम्राट्की सरकार, भारत-सरकार, और मुझे पूर्ण विश्वास है, संघ-सरकारने भी कभी नहीं की थी।

आपका विश्वस्त,

मो० क० गांधी

[ पुनश्च : ] आप इस पत्रका जो उचित समझें सो उपयोग कर सकते हैं।

मो० क० गांधी

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५९९१) की फोटो-नकलसे।

१. रायटरने इसे गांधीजी के एक पत्रके रूपमें उद्धृत किया था और यह इंडियन ओपिनियन,२४-६-१९१४ में भी प्रकाशित हुआ था