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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं प्रिटोरियाके प्रवासी-कार्यालयसे प्रार्थना कर रहा हूँ कि जिन दो सज्जनोंके नाम स्वीकार कर लिये गये हैं, उनके अनुमतिपत्र मुझे दे दिये जायें।

आपका आज्ञाकारी सेवक,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५७६२) की फोटो-नकलसे।

१०. पत्र: एशियाई-पंजीयकको

[फीनिक्स]
अप्रैल ११, १९१३

एशियाई-पंजीयक

प्रिटोरिया

महोदय,

हमें मालूम हुआ है कि आप पंजीकृत भारतीयोंकी पत्नियों के मामले में सबूतके तौरपर भारतके किसी प्रथम श्रेणीके मजिस्ट्रेटका इस आशयका प्रमाणपत्र मांगते हैं कि जो स्त्री अमुक पंजीकृत भारतीयकी पत्नी होनेका दावा करती है वह उस मजिस्ट्रेट के सामने पेश की गई गवाहीसे प्राप्त जानकारीके अनुसार उस भारतीयकी पत्नी है; और इस प्रमाणपत्रपर उस पंजीकृत भारतीयकी, यदि वह उस समय भारतमें हो तो, अंगूठा-निशानीकी भी अपेक्षा रखते हैं।

हमें यह भी मालूम हुआ है कि आप नाबालिग बच्चोंके मामले में सबूतके तौर पर किसी प्रथम श्रेणीके मजिस्ट्रेटका इस आशयका प्रमाणपत्र माँगते है कि उसके सामने प्रस्तुत बालक अदालतमें पेश की गई गवाहीसे प्राप्त जानकारीके अनुसार उस व्यक्तिकी सन्तान है जो उसका पिता होनेका दावा करता है; और इस प्रमाण- पत्रपर बच्चेकी अँगूठा-निशानी और यदि उसका पिता भारतमें हो तो उसकी अंगूठा-निशानी भी होनी चाहिए।

यदि आप हमें यह बता सकें कि हमें जो जानकारी मिली है वह ठीक है या नहीं, तो हम आपके आभारी होंगे। वैसे हमने यह जानकारी [ 'इंडियन ओपिनियन के ]अपने गुजराती स्तम्भोंमें प्रकाशित कर दी है। किन्तु यदि हमें आपसे यह सूचना अधिकृत रूपमें मिल सके तो इससे भारतीय दावेदारोंको बड़ी सहायता मिलेगी और वे भविष्य में अनावश्यक परेशानी और देर-दारसे बच जायेंगे।

आपका विश्वस्त,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५७६४) की फोटो-नकलसे।