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३३५. पत्र : कुंवरजी मेहताको

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ज्येष्ठ वदी ८, १९७० [जून १५, १९१४]

प्रिय श्री कुँवरजी'

आपका पत्र मिला उसके लिए आभारी हूँ। उम्मीद है, सूरतके विद्यार्थियोंसे भारत आनेपर मिलूँगा।

मोहनदास करमचन्द गांधीके यथायोग्य

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (एस० एन० २६६०) की फोटो - नकलसे ।

३३६. एक ऐतिहासिक बहस

भारतीय राहत विधेयक (इंडियन्स रिलीफ बिल) का द्वितीय वाचन काफी बहुमत से पास हो गया, और इस अवसरपर सरकारने अपनी भारतीय नीतिके विषयमें एक महत्वपूर्ण घोषणा की। जनरल स्मट्सका भाषण निश्चित रूपसे काफी नरम था और इस विषयपर अतीतकी उनकी कुछ वक्तृताओंके विपरीत, वह अपमानजनक तो था ही नहीं । जनरल बोथाका भाषण भी अवसरके योग्य था । हम उनकी इस घोषणाके लिए कृतज्ञ हैं कि सरकार इस विधेयकको अपने जीवन-मरणका प्रश्न मानती है । विधेयकके समर्थन में दी गई अन्य वक्तृताएँ भी वैसी ही उच्च कोटिकी थीं और न्याय और मंत्रीकी जो भावना इन भाषणों में दिखाई पड़ी उसे यदि वर्तमान कानूनोंके प्रशा- सनमें भी जारी रखा जाता है तो भविष्यमें कोई भारतीय झगड़ा खड़ा होनेका भय न रहेगा । हम इन भाषणोंको सरकार और संसदके इस इरादेका शुभ संकेत मानते हैं कि अधिवासी भारतीयोंके साथ न्याय और औचित्यपूर्ण व्यवहार किया जायेगा । पिछले अनुभवके विपरीत जनरल स्मट्सने इस बार यह स्पष्ट कर दिया कि सरकारने न केवल शाही-सरकार और भारत सरकारके विचारोंका ही खयाल रखा बल्कि भारतीय भावनाओं पर भी ध्यान दिया है। हम विश्वास करते हैं कि इसी नीतिका भविष्य में भी अनुसरण किया जायेगा।

बहसके स्तरके इतने ऊँचे रहनेका क्या कारण हो सकता है? निश्चय ही सम्राट् सरकारकी सतर्कता और वाइसराय द्वारा इस सवालके प्रति अपनाया गया साहसपूर्ण रवैया। श्री ऐण्ड्रयूज़के 'प्रेमके मिशन' का भी, इस बहसको उच्च स्तरपर रखने में, कुछ

१. कुँवरजी विट्ठलभाई मेहता; सूरतके पाटीदार विद्यार्थी छात्रालयके व्यवस्थापक।

२. यह घोषणा जून ८, १९१४ को की गई।