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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह मेरा दोष हो सकता है लेकिन इससे बचनेका एक ही उपाय है कि मैं किसीके साथ न रहूँ। फिलहाल यह मेरा कर्त्तव्य नहीं जान पड़ता । रा . . . मेरे कहे बिना और मेरे सम्मानकी खातिर अलोना भोजन करनेका दिखावाकर मुझे छले तो इससे मैं कैसे दोषी ठहरता हूँ ।... तुम अलोना नहीं खाते इस कारण मैं तुम्हें कम और .. बिलकुल फलाहारी है इसलिए उसे विशेष प्यार करता हूँ ऐसी कोई बात नहीं है। लोना- अलोना भोजन करने में कोई पाप-पुण्य नहीं है। उसमें जो रहस्य विद्यमान है उसमें पाप-पुण्य है । इमाम साहब कभी अलोना भोजन नहीं करते फिर भी [ वे ] मुझे प्रिय हैं । कुमारी श्लेसिन सब बातों में मुझसे भिन्न आचरण करती हैं तो भी उसके चरित्रको मैं कुछ हद तक तुम सबसे ऊँचा मानता हूँ । हम जितने भी फेरफार करते हैं उन सबमें हमारा उद्देश्य संयम और उसमें वृद्धि करते जाना है । और उस रात मेरे कहे हुए ये वचन कि जिन्हें ये स्वीकार्य न हों, उन्हें मुझको छोड़ना पड़ेगा, [ मुझे ] उचित ही जान पड़ते हैं । मैं न तो नॉर्टनके कार्यसे प्रसन्न होता हूँ और न बंगाली वकीलोंका तिरस्कार करता हूँ । सत्याग्रही उन दोनोंसे अलग है और उसका कर्त्तव्य भी भिन्न है । [ कौन ] सच्चा सत्याग्रही है, कौन नहीं, तुम्हारे द्वारा पूछे गये प्रश्न में यह प्रश्न भी आता है। यदि तुम अभी तक यह नहीं समझ सके हो तो मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि इसकी अनुभूति होती है, कोई अन्य इसे नहीं समझा सकता। और इसे समझने के लिए ही हम स्वादेन्द्रिय आदिको छोड़नेका प्रयास कर रहे हैं। संयमका अर्थ अलोना आहार लेना नहीं । तुम दो दिनकी सूखी रोटी और चुटकी भर नमक खाकर जीवन व्यतीत करो तो यह मेरे फलादि खानेसे कहीं अधिक ऊँची चीज हो सकती है। तुम्हारा सूखी रोटी और मेरे फलादि खानेका हेतु क्या है, इसपर कार्यकी शुद्धता निर्भर करती है।

[ चारित्र्य की ] पवित्रता आलोचकोंके आक्षेपोंसे लज्जित नहीं, बल्कि और भी प्रबल होती है।

तुमसे जो कुछ भी अनुचित बन पड़ा हो, वह सब कुछ तुम मुझे कह देना । इसके बिना तुम्हारे उपवास अथवा सैकड़ों प्रायश्चित्त [ भी ] फलित नहीं होंगे। मैं वहाँ आनको तड़प रहा हूँ लेकिन मेरा कर्त्तव्य मुझे नहीं छोड़ता।

ली हुई प्रतिज्ञा वापस लूं, यह बात सूर्य पश्चिमसे निकले तो भी नहीं हो सकती । जिनको मैंने अत्यन्त निष्पाप (व्यक्ति) माना है यदि वे ऐसे पापी हैं तो अपने इस शरीरको क्षण भरके लिए भी नहीं पालना चाहता।

प्रतिज्ञाओं का पालन आसानीसे नहीं किया जा सकता।

तुम दोनोंको इस पत्रसे रोष होगा। लेकिन मेरे मनमें जो है यदि उसे व्यक्त न करूँ तो मुझमें [ जो ] सत्य है उसपर आँच आती है और मैं तुम्हारा अहित करनेवाला भी बनता हूँ । तुम्हें दुःख देना इस समय मेरा धर्म जान पड़ता है ।

[ गुजरातीसे ]

महात्मा गांधीजीना पत्रो और गांधीजीनी साधना