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मणिलाल और जमनादास गांधीको लिखे पत्रका अंश

दिन आत्मोन्नति करना चाहिए। दिनोंदिन संयमी बनना चाहिए। मतलब यह कि आज तो आप स्वदेश लौट जानेके फर्जसे मुक्त हैं।

यह सब विचार करते हुए मैंने प्रेसकी स्थितिका जरा-भी विचार नहीं किया। मैंने यह सलाह इसी दृष्टिसे दी है कि आपकी आत्मोन्नति किस बात में है।

इतने पर भी यदि लौकिक मातृभक्ति आपको स्वदेशकी ओर ही खींच रही हो और यहाँ रहकर आपका मन शान्त न रह सकता हो तो आपको खुशीसे चले जाना चाहिए। मैं केवल सलाह दे रहा हूँ, ऐसा समझकर आपको अपना निर्णय स्वतन्त्र रूपसे करना चाहिए और उसीके अनुसार कदम उठाना चाहिए।

मोहनदासका यथायोग्य

[ गुजरातीसे ]

महात्मा गांधीजीना पत्रो तथा गांधीजीनी साधना

३३४. मणिलाल और जमनादास गांधीको लिखे पत्रका अंश

केप टाउन

शनिवार [ जून १३, १९१४ या

उसके बाद ]

तुम सब मेरे साथ-साथ दौड़ सको, यह इच्छा करना तो ठीक है; लेकिन मैं ऐसी आशा नहीं रखता। मैं जो कुछ करता हूँ वही तुम सब भी करो, मैंने कभी ऐसा नहीं कहा। लेकिन जो कुछ करनेकी जिम्मेदारी लेते हो उसे तो अवश्य करना पड़ेगा. [ इसमें ] जबरदस्तीकी तो कोई बात नहीं। अगर तुम अपनी इच्छासे सोच-समझकर . . . का व्यसन छोड़कर [ फिर ] मुझे छलो तो इसमें दोष तुम्हारा ही माना जायेगा . उसी प्रकार हम मानते हैं कि लड़के एक सीमा तक पहुँच गये हैं। फीनिक्स में वे कुछ बातोंसे परहेज रखते हैं, उन्हें वहाँ वे त्याज्य मानते हैं। फीनिक्ससे बाहर जानेपर उन्हीं बातोंको वे कैसे कर सकते हैं ? कोई भी अलोना भोजन करनेके लिए बाध्य नहीं है। मिर्च-मसाले, व्यसन, मिठाई, अत्यन्त स्वादिष्ट भोजन, चाय, काफी आदि तो सभीके लिए त्याज्य हैं । विषय-भोग, चोरी, झूठ और देरसे उठना सबके लिए वर्जित है । जिन्हें ये नियम कठोर जान पड़ते हैं, वे [ आश्रम में] रहते ही क्यों हैं ? प्रत्येक संस्थाके कुछ नियम होते हैं । उन नियमों का पालन [ संस्थाके ] अन्दर रहो चाहे बाहर, करना ही चाहिए। जो ऐसा नहीं कर सकते उनके संस्थामें रहनेका कोई अर्थ नहीं है ।

तुम्हारे कहने का यह अभिप्राय है कि लड़के और दूसरे लोग भी स्वेच्छासे नहीं, बल्कि मेरी शरम रखनेके लिए कुछ [ बातें] करते हैं और मुझे धोखा देते हैं।

१. पत्रमें नॉर्टनके उल्लेखसे जान पड़ता है कि यह " पत्रका अंश ", पृष्ठ ४१३-१४ के बाद लिखा गया होगा।

२. मूल सूत्रमें कई जगह शब्द छोड़ दिये गये हैं।