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३३२. पत्र : ई० एम० जोर्जेसको

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जून ११, १९१४

प्रिय श्री जॉर्जेस,

संलग्न [ कतरन ] का आशय स्पष्ट ही है। मेरी समझ में नहीं आया कि 'मर्क्युरी' ने विधानका यह अर्थ कैसे लगा लिया। परन्तु इसका सम्बन्ध एक इतने बड़े सिद्धान्तसे है कि मैं यह आश्वासन पाना चाहता हूँ कि सरकार इस विधेयकका वह अर्थ नहीं लगाती जो 'मर्क्युरी' ने लगाया है।'

[ आपका ]

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १-७-१९१४

१. नेटाल मर्क्युरीने अपने एक लेखमें इस बातपर शंका प्रकट की थी कि भारतीयोंको प्रान्तमें रहने की अनुमति दी जायेगी। उसकी दलील थी कि तीन-पौंडी कर हटा दिया जानेपर भारतीयोंको इस देश में रहने के विशेषाधिकार से वंचित कर दिया जायेगा, तब उनके लिए यही रास्ता रह जायेगा कि वे या तो फिरसे गिरमिटिया बनें या भारत वापस चले जायें। उसमें यह भी कहा गया था कि प्रवासी विनियमन अधिनियमके अन्तर्गत मन्त्री यदि चाहे तो आर्थिक कारणोंसे सभी एशियाइयोंको " निषिद्ध प्रवासी " घोषित कर सकता है और इस प्रकार भूतपूर्व गिरमिटिया भारतीयोंको निर्वासित कर सकता है।

२. ई० एम० जॉर्जेसने २२ जूनको इसका उत्तर दिया था : “ जनरल स्मट्स चाहते हैं कि मैं आपको लिखूँ कि आयोग के प्रतिवेदनसे यह बिलकुल स्पष्ट है कि सरकारका ऐसा कोई मंशा कभी नहीं रहा जिससे तीन-पौंडी करसे सम्बन्धित मौजूदा कानूनी व्यवस्थाओंको रद करके भूतपूर्व गिरमिटिया प्रवासियों की स्थिति किसी दूसरे तरीकेसे कठिन बनाई जाये; और माननीय मन्त्रीका निश्चित मत है कि यदि इसके सम्बन्धमें तनिक भी सन्देह होता तो आयोग ने अवश्य ही उसकी ओर ध्यान आकर्षित किया होता, क्योंकि उसमें तीन बड़े-बड़े वकील बैठे थे । मन्त्री महोदयको पूर्ण विश्वास है कि विधेयकको वर्तमान व्यवस्थाओं का भूतपूर्वं गिरमिटिया भारतीयोंकी स्थितिपर वैसा कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जैसा कि मर्क्युरी और आफ्रिकन क्रॉनिकल बतला रहे हैं और चाहते हैं कि हम उसपर विश्वास करें।"

१२-२७