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९. पत्र: गृह-सचिवको

फीनिक्स
अप्रैल ११, १९१३

सेवामें
गृह-सचिव[१]
केपटाउन
महोदय,

आपका इसी ४ तारीखका कृपापत्र प्राप्त हुआ। मैं मन्त्री महोदयको धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने वे दो नाम मंजूर कर लिये है जिन्हें गत वर्ष शिक्षित प्रवेशार्थियोंकी सूचीमें से निकाल दिया गया था।

मेरा मन्शा यह नहीं है कि मैं भविष्य में प्रवेशाथियोंके जो नाम पेश करूँ, हमेशा वे सब स्वीकार ही कर लिये जाने चाहिए। लेकिन मेरा इतना निवेदन अवश्य है कि जबतक समझौता अस्थायी स्थितिमें है तबतक ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेवाले जिन छः व्यक्तियों तक के नाम अपनी प्रातिनिधिक हैसियतसे में पेश करूँ, सरकार उन्हें स्वीकार कर ले। ज्यों ही समझौतेको अन्तिम रूप दिया जाये, जैसी कि मैं आशा करता हूँ कि चालू अधिवेशन में हो जायेगा, त्यों ही प्रवेशार्थियोंके नामोंका चुनाव करनेकी. कोई ऐसी व्यवस्था कर दी जाये जो सरकार और भारतीय समाज, दोनोंके लिए सन्तोषजनक हो।

मेरा अपना खयाल है कि प्रवेशार्थियोंके चुनावमें भारत सरकारकी कोई राय नहीं ली जा सकती। इसका सीधा-सादा कारण यह है कि उसे स्थानीय लोगोंकी आवश्यकताओंका अन्दाज नहीं है। मेरी समझमें यदि समझौतेको अन्तिम रूप देने के बाद विभिन्न भारतीय संस्थाएँ और दल बहुत-से नाम प्रस्तुत करें तो उनमें से प्रत्येक प्रार्थनापत्रको बारीकीसे देखना और किसी खास सालके लिए पूर्व निर्धारित संख्या में प्रस्तुत नामोंमें से प्रवेशार्थियोंका चुनाव करना सरकारका काम होगा।

आपके पत्रसे मुझे यह आभास भी मिलता है कि प्रवेशार्थियोंको अमुक प्रातों तक ही सीमित कर दिया जायेगा। मैं इस बातकी ओर ध्यान दिलाना चाहूँगा कि समझौतेके अनुसार समस्त संघके लिए जो भी सामान्य विधेयक होगा उसके अन्तर्गत शिक्षित प्रवेशार्थी संघके किसी भी प्रान्तमें प्रवेश कर सकेंगे और बस सकेंगे। हां, उसमें स्थानीय निर्योग्यताओंका, जो प्रवाससे सम्बन्धित न होंगी, ध्यान रखा जायेगा। निवेदन है कि समझौतेका कुल सार यही है कि प्रवासके मामले में नये भारतीय प्रवासियोंको ऐसी कोई निर्योग्यता सहनी नहीं पड़ेगी जो दूसरे वर्गों या दूसरी जातियोंपर लागू नहीं है। लेकिन आपके तारसे प्रकट होता है कि इस समय यह मामला मेरे उठाये हुए दूसरे मुद्दोंके साथ-साथ सरकारके विचारधीन है ।

  1. १. ई. एम. जोजेस ।