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सम्पूण गांधी वाङ्मय


प्रवेश और पंजीयनकी सुविधाएँ दी जायें, फिर चाहे वे दक्षिण आफ्रिकामें हों या उससे बाहर । आप देखेंगे कि यह मांग आयोगके प्रतिवेदनके पृष्ठ ३९ पर की गई उस दूसरी सिफारिशका ही कुछ विस्तृत रूप है, जिसमें इस देशमें सचमुच पहलेसे उपस्थित एकाधिक पत्नियोंको ही ऐसा विशेषाधिकार देनेकी बात कही गई है। श्री जॉर्जेसको शायद यह माँग अनुचित नहीं लगी, परन्तु उन्होंने मेरे सचिवसे कहा था कि उनको मालूम नहीं कि इसके बारेमें जनरल स्मट्स क्या कहेंगे। श्री गांधीने इस आश्वासनके लिए फिरसे अनुरोध किया कि जबतक नेटालमें उत्पन्न भारतीय प्रवासियोंकी संख्या, केपमें अपनी वर्तमान सीमासे अधिक नहीं होती, तबतक ऐसे भारतीयोंके प्रवेशपर शैक्षणिक परीक्षाकी शर्त नहीं लगायी जानी चाहिए और विशेषकर पिछले वर्षके प्रवासी विनियमन अधिनियमके खण्ड ४ (१) (क) की व्यवस्थायें लागू नहीं की जानी चाहिए। श्री गांधीने इसके सम्बन्धमें विधान बनानेकी मांग नहीं की, इसलिए कि वे शायद भली प्रकार समझते हैं कि यदि संसदमें केप-प्रवेशका प्रश्न फिरसे उठाया जाये, यहाँ तक कि यदि इसे आयोग द्वारा अपने प्रतिवेदनके पृष्ठ १६ पर सुझाये गये एक छोटेसे संशोधनको सिफारिशको स्वीकार करने के लिए भी उठाया जाये तो सरकारको कितनी बड़ी कठिनाईका सामना करना पड़ेगा। मुझे मालूम हुआ है कि आयोगने इस सिफारिशको कोई अधिक महत्व नहीं दिया और जब उनको पूरी स्थिति समझा दी गई और १९१३ के अधिनियम २२ के खण्ड ४ (२) (क) में "इस अधिनियमके लागू होनेतक" शब्दोंको रखनेका कारण उनको बतला दिया गया तो आयोगने सूचित कर दिया था कि यह ऐसा संशोधन है जिसपर वे बहुत जोर देना चाहेंगे।

फ्री स्टेटमें प्रवेश करनेवाले भारतीयोंको उस प्रान्तके कानूनके अन्तर्गत जो ज्ञापन देना पड़ता है उसके सम्बन्ध सन्तोषजनक वक्तव्य दिये जानेकी आवश्यकताको बात श्री गांधीने फिर उठाई। इसमें कोई कठिनाई नहीं पड़नी चाहिए क्योंकि इसके बारेमें श्री गांधी और जनरल स्मट्स पहले ही सहमत हो चुके हैं।

इसके पश्चात्, श्री गांधीने दो नये मुद्दे पेश किये।

(१) उन्होंने कहा कि ऐसी एक घोषणा की जानी चाहिए या आश्वासन दिया जाना चाहिए कि ट्रान्सवाल स्वर्ण-कानून द्वारा प्रदत्त अधिकारोंको मान्यता और संरक्षण मिलेगा। श्री जॉर्जेसने उनसे कहा कि इसका सम्बन्ध तो वास्तवमें खान-विभागसे है। उन्होंने सुझाव दिया कि वे [श्री गांधी] इसके बारे में जनरल स्मट्ससे बात करें।

(२) श्री गांधीने आग्रह किया कि सभी सच्चे सत्याग्रहियोंको, सत्याग्रह आन्दोलनके वीरान हिंसाके अपराधोंके अतिरिक्त, सत्याग्रहसे सम्बन्धित सदाशयतापूर्ण कानून-भंगके कारण दी गई सजाएँ बिना शर्त माफ की जानी चाहिए। मन्त्री महोदय इस अनुरोधको न माननेका रुख अख्तियार करें इसका कोई सबब तो नहीं दिखता, परन्तु फिर भी मुझे उनके ठीक-ठीक विचार मालम नहीं हैं।

विधेयककी धारा ४के बारेमें, मेरी जानकारी यह है कि सरकार, नेटाल अधिनियमोंके अन्तर्गत गिरमिटिया भारतीयोंको जो दर्जा मिला हुआ है उसे विनियमित