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तार : गृह-मन्त्रीको

जब मुझे यह सब मालूम हुआ, तो मैंने सोचा कि मैंने एक अपात्रपर विश्वास किया, उसका प्रायश्चित्त मुझे भोगना चाहिए। १५ दिनके उपवासकी प्रतिज्ञा लेते-लेते रुक गया। बा का खयाल आया। यदि म१५ दिन तक न खाऊं, तो बाका साथ-ही-साथ मरण समझो। इसी भयसे मने फिलहाल वह विचार छोड़ दिया है। परन्तु बादमें निश्चय हआ कि जे...'को भी...जाना ही चाहिए। वहाँ जाकर रहना ही उसका मख्य कर्तव्य है। यहाँ रहने में उसका कल्याण नहीं है ...।[१]समझमें नहीं आता कि मुझमें ऐसी कौन-सी बात है। दूसरे लोग जो कहते हैं उसके अनुसार तो मुझमें एक ऐसी कठोरता है कि जिसके कारण सामनेवाले व्यक्ति मेरा मन रखनेके लिए पूरी ताकत लगाकर काम करते हैं और जो उनसे करते नहीं बनता ऐसा काम करनेका प्रयत्न भी करते हैं। और चूंकि उनमें उन कामोंको सम्पन्न करनेकी शक्ति नहीं होती, इसलिए वे झूठका सहारा लेकर मुझे छलते हैं। गोखलेजीने भी कई बार मुझसे कहा, "आपमें एक ऐसी कठोरता है कि सामने के व्यक्तिके मनमें भय उत्पन्न कर देती है और आदमी डरके मारे आपकी इच्छा पूरी करने के लिए एड़ी-चोटीका पसीना एक करता रहता है। और जो व्यक्ति शक्तिशाली नहीं होता, वह अन्तमें झूठका सहारा लेता है। आप लोगोंपर बड़ा बोझ डाल देते हैं। यहाँतक कि मैं भी आपका कोई काम होता है, तो वशके बाहर होनेपर भी पूरी ताकत लगाकर उसे करता हूँ।"

[गुजरातीसे]
गांधीजीनी साधना

३१४. तार : गृह-मन्त्रीको

[फीनिक्स
नेटाल]
अप्रैल २४, १९१४

तीन-पौंडी करके बारेमें तुरन्त आश्वासनके लिए मेरा धन्यवाद।[२] मेरा सुझाव कि किस्ते अदा न करने या अदा कर न पानेके लिए हालके मुकदमोंके दौरान वेरुलम या कहीं और बन्दी बनाये गये लोग रिहा कर दिये जायें।

गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-४-१९१४


१२-२६
  1. १. इन स्थलोंपर मूलमें ही कुछ शब्द छुटे हुए हैं।
  2. २. गांधीजीके अप्रैल २२ के तारके उत्तर में जनरल स्मटसने तार भेजा था: “तीन-पौटी परवाने न लेनेके लिए भारतीयोंपर चले मुकदमोंके बारेमें आपका तार मिला । भारतीय जाँच आयोगकी सिफारिशोंपर संसद द्वारा विचार होने तक मुकदमोंके सम्बन्ध कार्रवाई स्थगित करनेके लिए न्याय-मन्त्रीको लिखा गया है।"