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पत्र : मणिलाल गांधीको


गई है और कहा गया है कि वह तो गुलामीके दर्जेकी है, इसलिए उसकी सन्तान भी गुलाम ही होती है।

श्रद्धा अर्थात् भक्तिको दिव्य माताकी उपमा दी गई है और दिव्य माताकी सन्तान देवरूप होती है। यह भावार्थ समझकर आगे-पीछेके वाक्योंपर विचार करना और लिखना कि अच्छी तरह समझमें आया या नहीं। पहले 'कॉरिन्थियन्स' के १५ वें प्रकरणके ५६ वें श्लोकका अर्थ यह है कि पाप ही मौतका डंक है, यानी पापी मनुष्यके लिए ही मौत डंकके रूपमें है। और दूसरे वाक्यका अर्थ यह है कि पुण्यशालीके लिए मृत्यु मोक्षका साधन है; और शास्त्रोंके शुष्क ज्ञानमें शापका बल होता है। यह हम पग-पग पर देखते हैं। शास्त्रोंके नामपर सैकड़ों पाप होते हैं। पाँचवें 'रोमन्स' के २० वें श्लोकका अर्थ आसान है। उसके सिवा, शास्त्र घुसा और अपराध बढ़े। लेकिन जब-जब पापका पंज बढ़ा, तबतब ईश्वरकी कृपा भी बढ़ी। यानी ऐसे कलिकालके सम भी शुष्क ज्ञानके बन्धनसे छूटनेवाले आदमी मिल गये। उन्होंने भक्तिमार्ग बताकर शास्त्रोंका गूढार्थ सिखाया, यह ईश्वरकी कृपा है। 'सेण्ट जॉन' के १५ वें प्रकरणके तीसरे श्लोकका अर्थ यह है : “जो वचन मैंने तुमसे कहे है, उन वचनोंके अनुसार चलनेसे तुम शुद्ध बनोगे" "Are" को भविष्यका वाचक समझो और "Through" का अर्थ 'अनुसार चलनेसे' करो।

'जीवनमें सुधार-सम्बन्धी परिवर्तन करनेसे पहले विचार करना। पर मैं चाहता है कि परिवर्तन करनेके बाद उनसे जोंककी तरह चिपटे रहो। श्री कैलेनबैकके गुणोंपर मुग्ध रहो। उनकी कमजोरी दिखाई दे तो उसे समझकर उससे दूर रहो। तुमने जो नया परिवर्तन किया है, वह विचारपूर्वक नहीं किया। जितने परिवर्तन श्री कलेनबैक करें वे सब करनेको तुम बँधे हुए नहीं हो। तुम्हें स्वतन्त्र विचार करना और उनपर दृढ़ रहना चाहिए। ऐसा करने में कभी भूल भी होगी। उसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। निर्मल चित्तसे खूब विचार करनेके बाद तुम्हें मेरे विचारोंका विरोध करनेका भी अधिकार है। और जहाँ ऐसा करने में नीति दिखाई दे वहाँ विरोध करना तुम्हारा फर्ज है। तुम मोक्षका तत्त्व समझो और मोक्षेच्छु बनो, यह मेरी तीव्र इच्छा है। और यह तब तक कभी नहीं होगा जब तक तुममें स्वतन्त्र विचार करनेकी शक्ति और दृढ़ता नहीं आयेगी। अभी तो तुम्हारी हालत किसी लताकी जैसी है। लता जिस वृक्षपर चढ़ती है, उसीका रूप ले लेती है। यह दशा आत्माकी नहीं है। आत्मा तो स्वतन्त्र है और मूल रूपमें सर्व-शक्तिमान है।

"काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।।
महाशनो महापाप्मा विद्धयनमिह वैरिणम् ।।

जब अर्जुनने श्रीकृष्ण भगवानसे पूछा कि मनुष्य इच्छाके विरुद्ध भी किसलिए पाप करता है, तो भगवानने उसे उपरोक्त उत्तर दिया। इसका अर्थ यह है कि “पापका कारण काम है, क्रोध है; वह रजोगणसे उत्पन्न होता है। वह बहभक्षी है और बहत पाप करानेवाला है। उसे जरूर अपना बैरी समझो।" यह सिद्धान्त है। इसलिए जब भी कैलेनबैकको गुस्सा आया, तुम्हें शान्त रहना चाहिए था। अपने बड़े-बूढ़े क्रोध करें