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पत्र: ई०एफ० सी०लेनको

जहांतक मैं समझता हूँ, जनरल स्मट्सने उन सभीको दूर करनेका वचन दिया था। तारमें एक बात छूट गई है। उनके और मेरे बीच पिछले साल जो पत्र-व्यवहार हुआ था,[१] उसमें मैंने यह पूछा था कि क्या फ्री स्टेटकी संरक्षण (रिजर्वेशन)-सम्बन्धी धाराके अन्तर्गत शिक्षित प्रवेशार्थियोंको कोई ज्ञापन (डिक्लेरेशन) देना पड़ेगा। यदि यह वांछनीय हो, तो उक्त धारामें कुछ ऐसा फेरफार करना होगा जिससे अचल संपत्तिके स्वामित्व' और खेती-बारी आदिका निषेध भले ही बरकरार रहे, लेकिन उन लोगोंके सम्बन्धमें ज्ञापनकी शर्त हटा दी जाये जो प्रस्तावित कानूनके अन्तर्गत प्रवासीके रूप में संघमें आयें।

भारतीय धार्मिक रीतियोंसे विवाहका प्रश्न एक हदतक नया मुद्दा माना जा सकता है। किन्तु क्या यह मुद्दा वास्तवमें नया है ? मैने निश्चय ही सपने में भी नहीं सोचा था कि भारतीयोंके विवाहोंको संघकी अदालतोंमें अबतक प्राप्त मान्यता गैरकानूनी थी। इस बातसे एक क्षणके लिए भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सर्लके फैसलेसे भारतीय समाजके अस्तित्वको धक्का लगा है और उसकी नीव हिल गई है।

आप कृपा करके यह पत्र जनरल स्मट्सके सामने रखें और पूछे कि विधेयककी जिम्मेदारी उनपर न हो तो भी क्या मैं उनसे सहायताकी आशा कर सकता हूँ। मैं जानता हूँ वे मेरे इस आश्वासनको मान लेंगे कि मैं सत्याग्रहके लिए लालायित नहीं हूँ। सच कहूँ, तो मुझे विधेयकमें भावना और भाषा, दोनोंकी दृष्टिसे अस्थायी समझौतेके पालन किये जानेका इतना विश्वास था कि मैं जूनमें भारत जानेकी तैयारी कर रहा था। मुझे भय है कि यदि आपत्तियाँ दूर न की गई तो भयंकर संघर्षका फिर छिड़ जाना अवश्यम्भावी है।

हृदयसे आपका,

श्री ई० एफ० सी०लेन
निजी सचिव, जनरल स्मट्स
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[पुनश्चः]

अभी-अभी एक नई बात मालूम हुई है, इसलिए मैंने गृह-मन्त्रीको एक और तार[२] दिया है। उसमें मैंने फ्री स्टेटकी कठिनाई बताई है।

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५७५४)की फोटो-नकलसे।

  1. १.देखिए खण्ड ११ ।
  2. २. देखिए पिछला शीर्षक ।