पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/४०४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२८६. पत्र : मणिलाल गांधीको

केप टाउन]
बुधवार, फाल्गुन सुदी ७ [ मार्च ४, १९१४]

चि० मणिलाल,

तुम्हारा खत मिल गया है। पानीका डिब्बा खो जानेकी बात तुम्हें मुझसे छिपानी नहीं थी। मैं ऐसी [छोटी-छोटी] बातोंका भी कितना ध्यान रखता हूँ, उसपर विचार करना और उससे सबक लेना। लेकिन सीख तो तुम तभी पाओगे जब मेरे सामने अपना हृदय खोल कर रख दोगे। जबतक एक क्षणके लिए भी अपनी भूल तुम मुझसे छिपाओगे तबतक तुम कुछ भी नहीं सीख पाओगे। यह समझो कि छिपाना असत्यका रूप है और असत्य शरीरमें जहरके समान है। [जहर] किसी वस्तु में विद्यमान अच्छे तत्त्वोंको भी जहरमें बदल देता है। दूधमें तिलभर भी संखिया मिल जाये तो दूध पीने लायक नहीं रहता। हमेशा सवेरे चार बजे उठनेका आग्रह रखना। सर्दी हो तो घरमें रहो। खूब वस्त्र पहनो लेकिन उठो जल्दी; सो जाओ चाहे जितनी जल्दी, उससे मुझे कोई ताल्लुक नहीं।

खाने में, तीन वक्त खानेकी आवश्यकता महसूस हो तो तीन वक्त खाओ। भोजन [के परिमाण आदि]को प्रतिबन्धित करनेकी [उतनी] जरूरत नहीं है। भोजनमें क्या लेना है क्या नहीं, इस सम्बन्धमें संयम काफी है।

बा की तबीयत आज कुछ अच्छी है। लेकिन अभी हालत गम्भीर है; और वह बिस्तरपर पड़ी है। श्रीमती गुल और उनके बच्चे बहुत मदद करते हैं।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यु. १५००) से।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी

२८७. पत्र : देवदास गांधीको

[केप टाउन]
फाल्गुन सुदी ८, १९७० [मार्च ५, १९१४]

चि० देवदास,

तुम अपने अक्षर सुधारो। बा की तबीयत फिलहाल तो बहुत खराब है। डॉक्टरी दवासे उसे कोई लाभ नहीं हो रहा है। ऐसा हम दोनोंका ही खयाल है। वैसे डॉक्टरी इलाज किया जाये, यह उसीकी इच्छा थी। पर दो-तीन खुराक दवा पीनके बाद ही बीमारी बढ़ गई। अब तो कुछ खाया ही नहीं जाता। और आखिर मृत्यु

१. गांधीजीके सबसे छोटे पुत्र ।