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२८५. पत्र : सर बेंजामिन रॉबर्ट्सनको

७, बिटेनसिंगल
केप टाउन
मार्च ४, १९१४

प्रिय सर बेंजामिन,

श्री पोलककी टिप्पणीको देखते हुए ऐसा लगता है कि शायद उन तरीकोंका उल्लेख कर देना उचित होगा जिनसे कई मामलों में राहत दी जा सकती है।

प्रवास : सम्बन्धित कानूनके अमलको नरम बनाकर राहत दी जा सकती है। क्योंकि सभी प्रान्तोंपर एक ही कानून लागू होता है। और यह राहत विनियमोंको इच्छित दिशामें संशोधित करके दी जा सकती है। अन्तरप्रान्तीय आवागमन और यात्रा- अनुमतिपत्र केवल मांगनेसे ही मिल जाने चाहिए। इसके लिए कुछ न लिया जाये और यदि लिया ही जाये तो बहुत थोड़ा; लागत-मात्र ले लेनेके विचारसे उसपर एक शिलिंगके टिकटसे अधिक नहीं लगना चाहिए।

ट्रान्सवाल प्रमाणपत्रोंकी तरह शिनाख्तके प्रमाणपत्र भी सावधिक न होकर स्थायी होने चाहिए। इन मामलोंमें ट्रान्सवालको अन्य प्रान्तोंसे अधिक सुविधा क्यों होनी चाहिए?

बच्चोंको वापस करने और उनके लौट जानेका प्रश्न निश्चित रूपसे तय होना चाहिए।

जिन पत्नियोंको प्रशासनिक तरीकेसे प्रवेश मिल सकेगा उनसे क्या प्रमाण चाहिए, यह स्पष्ट कर दिया जाये। वैसे तो, यह जरूरी है कि विनियमोंकी एक-एक घारा श्री जॉर्जेसके साथ देखी जानी चाहिए और फिर उनपर जनरल स्मट्सके साथ विचार किया जाना चाहिए।

विक्रेता परवाना : यह एक जटिल प्रश्न है। तीन प्रान्तोंमें तीन भिन्न-भिन्न प्रकारके कानून है और उनपर सीधे संघ सरकार द्वारा अमल नहीं कराया जाता। अंशतः उनका नियन्त्रण प्रान्तीय सरकारोंके और अंशत: नगरपालिकाओंके हाथमें है। प्रत्येक नगरपालिकाकी अपनी रीति है और उप-नियम है। अधिकसे-अधिक यह किया जा सकता है कि सरकार उत्तरदायी संस्थाओंके नाम एक विज्ञप्तिपत्र दे जिसमें सब धान बाईस पंसेरीकी नीति अपनाने के खतरोंके प्रति चेतावनी हो। यह तरीका सफलतापूर्वक स्वर्गीय एस्कम्बने अपनाया था। १८९६ का नेटाल परवाना कानून इन्हींके द्वारा प्रणीत हुआ था। किसी भी दिन यदि संघ प्रशासनका रुख सुधरता है तो यह बात स्थानीय प्रशासनकी निगाहमें आये बिना नहीं रहेगी।

१. सर हैरी एस्कम्ब (१८३८-९९); प्रमुख वकील, जिन्होंने गांधीजीके नेटालके सर्वोच्च न्यायालयके वकील संघमें प्रवेश पानेकी वकालत की। वे १८९७ में कुछ महीनोंके लिए नेटालके मुख्यमन्त्री थे।