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पत्र : हरिलाल गांधीको

तुम्हें यदि अपनी मर्जीके मुताबिक ही पढ़ाई करनी है तो तुम्हें चंचीको मेरे पास रखना होगा और तुम्हें मुझसे अलहदा रहना होगा। तुम्हारी आवश्यकताओंकी पूर्ति मैं करूँगा। चंचीकी चिन्ता तो तुम तब करना जब कमाने लगो। और यदि तुम्हें मेरे साथ रहना हो तो मेरे साथ रहो और मेरे दाहिने हाथ बनो। इन सब बातोंके बारेमें तुम स्वयं सोचना। मेरी इच्छा क्या है, इसका जरा भी विचार न करना। मेरी जो राय है उसकी दूसरी सलाहोंके साथ तुलना करके जैसा ठीक ऊँचे करना। तुम्हारे प्रति मै एक शंकित पिता हूँ। तुम्हारे लक्षण मुझे जरा भी पसन्द नहीं हैं। मुझे इसमें भी शंका है कि तुम्हारा हम लोगोंके प्रति प्रेम है। यह बात अत्यन्त कठोर है, परन्तु तुम्हारे पत्रों में मुझे बड़ी कृत्रिमता लगती है। यदि इसमें मुझसे कहीं गलती हो रही है तो मैं कुरुक्षेत्रमें हूँ, ऐसा समझ कर और श्रवणने जिस प्रकार अपने माता-पिताके प्रति उदारताका बरताव किया था, उसी प्रकार तुम भी मुझे क्षमा कर देना। साधारण बालक भी माँ-बापके प्रति अपना स्नेह किसी-न-किसी रूपमें तो व्यक्त करते ही हैं, पर तुममें तो स्नेहका नाम भी नहीं है। और तो भी मैं एक ऐसा गुमानी बाप हूँ कि अपने बच्चोंमें पूर्णत्वकी प्रतिष्ठा किय बैठा है। सच में यह भल है, मोह है। पर यह छोड़कर...पूर्ण नहीं की... तुमने वादा किया था, फिर भी पिछले वर्षके परीक्षा-सम्बन्धी कागजात तुमने नहीं भेजे। इस वर्ष के भी भिजवाने है, इतना याद रखने का कष्ट भी तुमने नहीं किया। तुम्हें पत्र लिखते हुए मुझे क्रोध आने लगता है और रोना भी। मेरा ऐसा अज्ञान है, मूढ़ावस्था है। मुझे तुम्हारे प्रति इतनी आसक्ति नहीं होनी चाहिए। अवश्य ही मैं इससे मुक्त हो सकूँगा, पर जबतक नहीं हो पाता, मुझे निबाह लेना।

अब तुम्हारे लिए इतनी सीख बहत हो चकी। और नहीं लिखंगा। मुझे अपना मित्र समझकर तुमने मेरे प्रति मित्रभाव रखा तो भी काफी होगा। मेरी तो यही इच्छा है कि तुम्हारा चरित्र सुधरे और तुम अपनी आत्मोन्नति कर सको।

सम्भवतः मैं वहाँ अप्रैलमें आ सकू। अभी तो केप टाउनमें हूँ। बा मेरे साथ ही है। वह तो जीवन और मरणके बीच पड़ी है। कलतक तो तबीयत बहुत ही खराब थी। आज फिर कुछ सुधरी है। शरीर पिंजर-मात्र रह गया है। मुझे किसी भी प्रकारका कष्ट तो नहीं देती; पर उसका जीभपर काबू अभी तक नहीं हो पाया है, उसीसे पिसती है और कष्ट भोगती है। सारा दिन उसीको खटियाके पास बैठा रहता हूँ। आज और कल दो दिनोंके बीच दो टमाटरका रस और एक चम्मच [जैतूनका] तेल पेटमें गया होगा।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (एस० एन० ९५४३) की फोटो-नकलसे ।

१. यहाँ मूल सूत्रमें ही कुछ शब्द नहीं हैं।