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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


है? माफी मांगनेवाला फिर वही गलती न करे, यही माफीकी सार्थकता है। मेरे माफ करते चले जानेका मतलब तो इतना ही हुआ कि तुम पुत्रका अपना फर्ज पूरा न करो तो भी मुझे तो पिताका फर्ज अदा करते ही रहना चाहिए। खैर; वह मैं वश-भर अदा करता ही रहेगा। म तो अब यह भी नहीं मानता कि तुम हम दोनोसे मिलनके लिए बडे अधीर हो रहे हो। तम यहाँ आनेवाले थे. मझे तो यह बात लगती है। आनमें क्या ढोल बजाने पड़ते है ? और अब तो, जैसा तुम भी लिख हो, आना व्यर्थ है। अब मुझे लगता है कि तुम्हारे और मेरे विचारोंमें बड़ा अन्तर है। तुम पुत्रकी दृष्टिसे जिसे अपना फर्ज समझते हो, मेरी समझमें वह उससे भिन्न है। अस्तु; तुम्हारा फर्ज क्या है, इसे समझनेका हक मुझे नहीं है। अपने निश्छल मनसे तुम जिसे फर्ज समझो, यदि उतना-भर करते जाओ तो भी मुझे सन्तोष होगा। और तुम्हारे कार्योंसे मैं या अन्य लोग भी यह जान सकेंगे कि तुम अपना फर्ज शुद्ध मनसे समझ पाये हो या नहीं। ऐसा लगता है कि तुमने मेरा फर्ज क्या है, इसपर भी विचार किया है और इसमें भी हमारी दष्टि भिन्न है। पर मेरा फर्ज क्या है, इसे समझनेका अधिकारी तो मैं ही हो सकता हूँ। कुछ भी हो, तुम अपने विचार मुझपर प्रकट करते रहना।

तुम्हारे पत्रका जवाब मैने नहीं दिया था। मुझे वह जेलसे छूटनेके बाद मिला। उसमें जो बातें थीं उनके सम्बन्धमें मैंने कार्रवाई कर ही दी थी। यानी मन रेवाशंकरभाईको लिख ही दिया था कि वे तुम्हारे साथ चर्चा कर लें और जो-कुछ अधिक पैसा तुम्हें देना आवश्यक हो, दे दें।

चंचीके बारेमें तुम मेरी राय पूछते हो। अपनी पढ़ाईके सम्बन्धमें भी सलाह चाहते हो और दूसरी ओर तुम मेरी उन सारी शर्तों को तोड़ते रहते हो जिनके पालनका तुमने मुझसे वादा किया था। मेरा तुम्हें यह आदेश था कि तुम अपने स्वास्थ्यको बिगाड़कर पढ़ाईमें न जुटो। पर तुम अपनी तबीयतको सम्हाल कर न रख सके। रामदास और मणिलाल तुमसे आगे निकल गये हैं। पर इसमें आश्चर्य ही क्या है? रामदासने तो बड़ी मेहनत की है और उसने शरीर भी अच्छा बना लिया है। मणिलालम भी ताकत तो खूब है पर वह यदि दुष्ट विषय-वासनामें आसक्त न होता तो विशेष ताकतवर बन पाता। मेरे खयालसे तम्हारी अपेक्षा इन दोनोंकी अधिक हो गई है। तुम्हारा मन अब बम्बई जानेपर तुला है। और इसमें रेवाशंकरभाईकी भी सम्मति है, ऐसा लिख रहे हो। पर इस सम्मतिका मेरी दृष्टिमें कोई मूल्य नहीं है। यदि हीरेकी परखकी बात होती तो मैं उसे शिरोधार्य करता पर पढ़ाईके सम्बन्धमें उनकी बात मैं कैसे मान लूं? मुझे लगता है, तुम बड़ी गफलतमें हो। ऐसी हालतमें मैं क्या करूँ? तुम्हें डावरकी पढ़ाई ही जंचती है, यह देखकर मैं तो दंग रह जाता हूँ। और मैट्रिकुलेशनकी परीक्षा पास करके कौन-सा गढ़ जीत लोगे? मैं तो यह भी नहीं समझ पा रहा हूँ कि तुम आखिर करना क्या चाहते हो। मेरी सलाह तो यह है कि जरा धीरजके साथ सोचो। मैं आता हूँ तबतक रुको। इस बीच जो पढ़ना हो पढ़ो, पर नया कुछ न करो। बादमें जो चर्चा करनी हो मेरे साथ भी कर लेना।