पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/३९७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५९
पत्र : रावजीभाई पटेलको


कुटुम्ब, समाज और जगतको सुशोभित करनेवाले है। इनमें भी कर्म-संयोगसे चि० जमनादास सबसे आगे निकलता दिखता है। कुदरतके नियमसे भी ऐसा ही होना चाहिए। जमनादास चारों भाइयोंमें छोटा है। मतलब यह कि जमनादासके जीवको आप दोनोंने जब आकर्षित किया उस समय आप दोनोंकी आत्मिक स्थिति विशेष परिपक्व हो चली थी। स्वाभाविक ही है कि जमनादासकी आत्मिक स्थिति भी वैसी ही हो। उसे अन्य तीनों भाइयोंकी अपेक्षा दूसरे अनेक विशेष अनुकूल संयोग भी प्राप्त हैं। खेर, पर यह सब तो मेरी कल्पनाएँ हैं। हमारा कर्तव्य तो यह है कि अपनी सन्तान में जो-कुछ अच्छाई दीख पड़े उसे प्रेरित करके उसका विकास करें। शेष तो सारा उनके प्रारब्ध-योगपर आधारित है।

आपकी दोनों बहुएँ भी आपके लड़कोंकी ही तरह है। काशी' और संतोकसे' मिलकर मैं यह मानता हूँ कि अपने पूर्व पुण्योंके योगसे ही मैं ऐसे कोमल बच्चोंके सम्पर्क में आया हूँ। ये सबके-सब मुझे सन्तोष देनेके लिए अथक प्रयत्न करते है। इन्होंने यहाँ मेरा काम बहुत ही सहल कर दिया है।

मेरे भाग्यका विशेष उत्कर्ष हुआ प्रतीत होता है कारण आदरणीय श्री कालाभाई भी अपने पुत्रको मुझे सौंपना चाहते है। मैं भी जवाबदारियाँ लेनेसे हार माननेवाला नहीं हूँ। और मेरा मन कहता है कि मुझे ईश्वरपर पूर्ण विश्वास है।

मोहनदासके दण्डवत्

[पुनश्चः ]

चि० हरिलाल महीना-भर पहले आपके पास था; इसलिए उसके नामका पत्र' आपके पतेपर ही भेज रहा हूँ।

मोहनदासके दण्डवत्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू०५६३७) की फोटो-नकलसे। सौजन्य : नारणदास गांधी

२८२. पत्र : रावजीभाई पटेलको

केप टाउन
फाल्गुन सुदी ४, १९७० [मार्च १, १९१४ ]

प्रिय श्री रावजीभाई,

आपका पत्र मिला। नेपाल' मुक्त हो गया। उसकी पत्नी बड़ी कठोर है, यह मैं जानता हूँ। मृत्यु हमें अपने कर्तव्यकी ओर प्रेरित करती है और इस देहके प्रति

१ और २. क्रमशः छगनलाल और मगनलालकी पत्नियाँ । ३. लक्ष्मीदास; गांधीजीके सबसे बड़े भाई । ४. देखिए “ पत्र: हरिलाल गांधीको", पृष्ठ ३६१-६३ । ५. एक गिरमिटिया भारतीय, जिसकी मृत्यु बीमारीकी हालतमें आग लानेके कारण हुई थी।