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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


तुम्हारे प्रयत्नोंपर ही सेवा निर्भर करती है। इस पत्रके रहस्यपर समझकर विचार करना। बापूपर रोष न करना।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू. ५६५०) से। सौजन्य : राधाबेन चौधरी।

२८१. पत्र: खुशालचन्द गांधीको

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फाल्गुन सुदी ४, [मार्च १, १९१४]

आदरणीय श्री खुशालभाई,

मेरी बात मानकर आपने चि० जमनादासको भी भेज दिया है, इससे मेरी खुशीका कोई पार नहीं है। चि० जमनादास जिस उत्साहसे आया उसीसे जेल गया और वहाँ अपनी बहादुरी दिखाई। जेल जाते समय और जेलमें भी उसने जिस हिम्मत और सूझ-बूझका परिचय दिया है, वह पहली बार जेल जानेवाले व्यक्तियोंमें शायद ही मिले। मुझे अभी तो ऐसा कोई उदाहरण याद नहीं आता। जमनादासका व्यवहार तो ऐसा-कुछ रहा जैसे वह [जेलके कष्टोंका] अनुभव पहले कर चुका हो। इसका मतलब यह है कि उसने दूसरोंके अनुभवोंपर बारीकीसे ध्यान देकर उनसे शिक्षा ली है। कई लोग ऐसे होते है, जो जबतक स्वयं ठोकर न खा लें तबतक सीख नहीं पाते। परन्तु जमनादासमें मैंने दूसरोंके अनुभवसे सीख सकनेका गुण देखा है। अत्यन्त मननशील होनेके कारण वह थोड़ा ढुलमुल जरूर है, पर यह बात समयके साथ जाती रहेगी, ऐसा मैं मानता हूँ। उसका स्वास्थ्य ठीक है।

उसके विवाहके सम्बन्धमें अभी कुछ कहने के बदले अच्छा तो यह होगा कि हम जब मिलेंगे तभी चर्चा करें। आपके लिखनेका मतलब मैं समझ गया हूँ। सारी परिस्थितिका विचार करके ही जो करना ठीक होगा, करेंगे। मेरी समझमें आपकी अनिवार्य आवश्यकताओंकी पूर्ति करने में नारणदास' पूर्ण समर्थ है। मेरा खयाल है, अपनी सेवाके लिए यदि आप किसी पुत्रको अपने पास रखना चाहें तो एक पुत्र काफी है। इस विषयमें भी हमारा साथ बैठकर विचार करना ही ठीक होगा। यदि यहाँ समझौता हो गया तो अप्रैल में निकल पानेकी उम्मीद है। और यदि संघर्ष फिर छिड़ गया तो विचार करनेकी कोई बात ही नहीं रह जाती। उस हालतमें जमनादासको भी पूरी तरह संघर्ष में उतरना होगा। जमनादासके अन्तरमें जो रत्न भरे हैं उन्हें बाहर प्रकट करनेकी मेरी बड़ी अभिलाषा है। मैं देखता हूँ कि आपके सबके-सब पुत्र' अपने

१. श्री खुशालचन्दका तीसरा पुत्र ।

२. जमनादासके अतिरिक्त छगनलाल, मगनलाल और नारणदास ।