पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/३९५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२८०. पत्र : मणिलाल गांधीको

७ "बिटेनसिंगल'
[केप टाउन]
फाल्गुन सुदी ३, [फरवरी २८, १९१४]

चि० मणिलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हें दुःख होता है, यह मैं समझता हूँ। कोई पूछता है कि कैसे आये तो तुम्हें कारण बतानेकी हिम्मत नहीं पड़ती। “मेरा रहन-सहन पसन्द नहीं आया, इसलिए बापूने एकान्तमें रहनेके लिए भेज दिया है", ऐसा कहने में कोई दिक्कतकी बात नहीं है। बा की सेवा-टहलसे छुट्टी दी, अपने आरामकी परवाह किये बिना तुम्हें जानेकी अनुमति दी, यह सब अत्यन्त निर्मल प्रेमके कारण ही सम्भव हुआ होगा, तुम्हें यह समझ लेना चाहिए। तुम्हारी सेवा-भावनासे अधिक मुझे तुम्हारे सदाचरणकी आकांक्षा है। तुम यदि सदाचरणसे न फिसले तो समझूगा कि मुझे सब-कुछ मिल गया। बा को भी यही समझाता हूँ कि तुम्हारा जाना ठीक ही हुआ। पिछले चार दिनोंसे देख रहा हूँ कि भोजनकी मेजपर दिनमें तीन बार मांस परोसा जाता है। मैंने खानेका समय बदल दिया है और अपना खाना जल्दी खा लेता हूँ। मुझे कल मेजपर मांस देखना पड़ा, उससे मन, बहुत अकुलाया और मैं दुःखी हुआ। अब तो मैंने निश्चय किया है, जहाँतक हो सके, अपना [खानेका] समय उनके साथ रखूगा ही नहीं। इसमें उनका दोष नहीं है। वे शुद्ध मनसे कहते हैं कि मैं अपने खानेका समय बदल लूं। पहले मुझे इतनी परेशानी नहीं होती थी, जितनी अब होने लगी है। यह अच्छी निशानी है। और वे सब-कुछ पकाते हैं, इसमें उनका दोष नहीं। लेकिन मैं तुम्हें ऐसी स्थितिमें नहीं डालना चाहता। मेरे साथ बा न हो तो मैं पकी हुई कोई चीज ही न खाऊँ। अब तो सब-कुछ पकाया जाता है। बन [ मीठी मोटी रोटी] बनाया जाता है, मुरब्बा बनता है और मूंगफलीको भी पकाया जाता है। मैंने उपर्युक्त कारणोंसे तुम्हें [ वहाँ] भेजा, सो बात नहीं। लेकिन वह सब देखकर लगता है, ठीक ही हुआ। जबतक श्री ऐंड्रयूज़ थे तबतक वे तुम्हारे लिए ढाल-स्वरूप थे, लेकिन तुम्हारी खातिर मांस न पकता, ऐसा सम्भव न होता। तुम्हारे जानेसे तुम्हारा हित ही है। बा की अथवा मेरी सेवा अगर तुम्हें करनी होगी तो तुम्हें वैसा अवसर अवश्य मिलेगा। तुम्हारी दृढ़ इच्छा होगी, तभी वह अवसर मिलेगा अथवा मैं अपने स्वार्थके वशीभूत होकर तुमसे सेवा करवा कर बिगाड़ना चाहूँ तब मिलेगा। दूसरा विकल्प न हो इसलिए

१. इस पत्रमें ऐन्ड्यूजका जिक्र आया है उससे लगता है कि यह उनके २१ फरवरी, १९१४ को दक्षिण आफ्रिकासे रवाना होनेके बाद लिखा गया है। उस वर्ष फाल्गुन सुदी ३ को फरवरीकी २८ तारीख पड़ी थी।