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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अधीर होना मेरा दोष है। उस हदतक मैं मुग्ध प्रेमी हूँ। तुम मेरे बच्चे हो इसलिए यह मोह अभी गया नहीं है। इस मोहके टूट जानेपर तुम्हें जो निर्दयता मुझमें दिखाई देती है वह भी कदाचित् दिखाई नहीं देगी। उस दिनके आने तक तुम मुझे निभाओ।

अब तुम्हारे पत्रकी विरोधोक्तिके सम्बन्धमें। मेरे कटु वचन बोलनेके कारण [जैसा कि तुम कहते हो] तीन दिन तक तुम केप टाउन देखने नहीं गये। लेकिन तुमने जाते समय मेरे कटु वचन कहनेके बावजूद केप टाउन देखनेकी इच्छा प्रकट की थी। ये कट वचन तो रविवारको भी जैसेके-तैसे] थे। क्या मझे निर्दयी मानकर तुम मेरे साथ रहकर कुछ सीख सकते थे? तुमने टेबल माउंटेन घूभनेकी तीव्र इच्छा प्रकट की थी। तब मैंने तुम्हें जो यह कहा कि तुम और भी [चीजें] देखोगे, उसमें तुम्हें क्या बुराई दिखाई दो?

लेकिन हुआ सो हुआ। मेरे दोषोंको न देखना तुम्हारा कर्तव्य है। बच्चों में इतनी भक्ति होनी चाहिए कि वे बापके दोषोंको न देखें और उसके गुणोंका ही विचार करें। तुममे भी वैसी श्रद्धाकी कामना करता हूँ। मैं तुम्हें साधु नहीं बनाना चाहता। मैं तुम्हें शुद्ध आचरण करते हुए देखना चाहता हूँ। तुममें सत्य, शील, सरलता, कोमलता, गरिमा, नम्रता और साधुता देखनेकी इच्छा करता हूँ। तुममें संसारके साधारण सुखोंके प्रति विरक्तिकी भावना देखना चाहता हूँ। लेकिन ये सारी बातें तो तुममें नजर नहीं आती। मैं कोई काम करता हूँ इसलिए तुम्हें भी वही काम करना चाहिए सो बात नहीं। लेकिन यह कामना करता हूँ कि तुम मेरे मार्मिक उद्गारोंको समझकर अपना जीवन सफल बनाओ।

यह पत्र चि. जमनादासको भेज देना ।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
जीवन- परोढ

२७७. पत्र : गो० कृ० गोखलेको

केप टाउन
फरवरी २७, १९१४

प्रिय श्री गोखले,

फिलहाल में केप टाउनमें घटनाओंका रुख देख रहा हूँ। मैं संघर्ष के बारेमें कोई सूचना देकर आपको कष्ट नहीं पहुँचाना चाहता। मैं जितना भी संक्षेपमें लिख सकता हूँ, लिखूगा।

सर्वश्री ऐन्ड्रयूज और पियर्सन सचमुच अच्छे लोग है। हम सब उन्हें बहुत चाहते है। सर बेंजामिनने हमें निराश कर दिया है। उन्होंने कोई भलाई तो की ही नहीं है; पर वे नुकसान काफी कर सकते है। वह कमजोर हैं और किसी भी प्रकारसे सच्चे नहीं हैं। सारी तफसील तो वे शायद अभी तक नहीं समझ पाये हैं। और निस्सन्देह वे जाने-अनजाने हममें फूट डाल रहे हैं। श्री ऐन्ड्रयूज आपको उनके बारेमें