२७४. एक तरुण महिला सत्याग्रहीको असामयिक मृत्यु
हम यह सूचित करते हुए अत्यन्त दुःख होता है कि जेलमें लम्बी बीमारी भोगनेके बाद घर आकर इसी २२ तारीखको जोहानिसबर्गके श्री आर० मूनसामी मुदलियारकी सबसे बड़ी कन्या, कुमारी वलिअम्मा, का देहान्त हो गया। मालूम हुआ है कि सजा मिलनेके बादसे ही वे शय्याग्रस्त हो गई थी और रिहाईके बाद भी काफी बीमार बनी रहीं। स्वर्गीया कुमारी वलिअम्माका जन्म १८९८ में जोहानिसबर्ग में हुआ था। उन्होंने गवर्नमेंट स्कूलमें शिक्षा पाई। पिछले २९ अक्तूबरको वे सत्याग्रहकी लड़ाईमें शामिल हुईं और महिलाओंके एक दलके साथ न्यूकैसिल रवाना हुईं। बादमें उन्होंने चार्ल्सटाउन, डंडी, लेडीस्मिथ, डेनहॉज़र, मैरित्सबर्ग, टोंगाट और डर्बनके कार्यमें मदद दी। उन्होंने ट्रान्सवालकी सीमाको पुनः पार किया, और अपनी माता तथा अन्य लोगोंके साथ उन्हें फोक्सरस्टमें २२ दिसम्बर, १९१३ को तीन मासके सपरिश्रम कारावासकी सजा हुई, और अस्थायी समझौते की शतोंके अनुसार इस माह ११ तारीखको उन्हें रिहा कर दिया गया।
उनके पिता ट्रान्सवालके प्रारम्भिक भारतीय अधिवासियोंमें से है। वे भी एक बार सत्याग्रहीके रूपमें जेल भोग चुके थे। पिछली लड़ाईके समय वे बहुत बीमार थे और एक आपरेशनके बाद अस्पतालसे हाल ही में लौटे थे। हम [वलिअम्माके ] माता-पिताके शोकमें सम्मिलित है और उनकी अपूरणीय क्षतिके प्रति अपनी गहरी सहानुभूति प्रकट करते हैं।
इंडियन ओपिनियन, २५-२-१९१४
२७५. पत्र: जमनादास गांधीको
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फाल्गुन सुदी २, १९७० [फरवरी २६, १९१४]
देखता हूँ, तुमने और मणिलालने इस बार मुझे समझने में भूल की है। यदि मुझे तुम्हें रखने में तुम्हारा भला दीख पड़ता तो मैं अपने स्वार्थकी दृष्टिसे भी तुम्हें जानकी अनुमति नहीं देता। यहाँ के वातावरणके विरुद्ध में नहीं लड़ सकता था। वातावरणका कैसा सूक्ष्म प्रभाव होता है, इस बातका तुमने विचार नहीं किया। डॉ. गुलकी कीमत में तुम सबसे अधिक जल्दी पहचान सका हूँ। लेकिन जैसे तुम्हारी कीमत जानते हुए भी मैं तुमको निर्बल और बालक मानता हूँ और दूसरोंको तुम्हारी देखरेखमें