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आंगलियाकी गवाही

चि.... की मैंने जिस ऊँचाईपर कल्पना की थी वह अब वहाँसे नीचे उतर आई है। फिर भी मेरा मन कहता है कि वह पुण्यात्मा तो है ही। उसमें सद्गुण बहुत है। उनको विकसित करना हमारा कर्तव्य है। हमें ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे उसे उस (कृत्य) की याद न आये। उसे गृह-कार्यमें कुशल होनेमें प्रोत्साहन देना। बालकोंमें से उसका कोई अपमान न करे इसका ध्यान रखना। . . . रातकी कथाको जारी रखना। बालकोंको पाँच बजे उठानेकी जिम्मेदारी रा... के ऊपर है ...। मगनभाईकी तबीयतका समाचार नियमपूर्वक मिलना चाहिए।

मोहनदासके यथायोग्य

[गुजरातीसे]
महात्मा गांधीजीना पत्रो और गांधीजीनी साधना

२६७. आंगलियाकी गवाही

श्री आंगलिया हमारे द्वारा की गई टीकापर श्री गांधीको इस प्रकार लिखते हैं: मैंने जो गवाही दी है आपने अपने " इंडियन ओपिनियन "में उसकी टीका की है। मैं उसे ध्यानपूर्वक पढ़ गया हूँ। मुझे बड़ा खेद है कि मेरी पूरी गवाही गुजरातीमें प्रकाशित होनेके पूर्व ही आपने अपनी राय उसपर दे दी है। क्या ऐसा करना आपके और आपके पदके योग्य है? तो भी मैं मानता हूँ कि यह पत्र समाजका है और आप भी कहते है कि समाजकी सेवा करना आपका काम है। अतः आप यदि समाजकी सेवा ठीक तौरसे करना चाहते हैं तो आगामी अंकमें इस गवाहीको पूरा-पूरा छाप दें। और इसके बाद आप चाहें जैसी टीका करें। पर जबतक आप इसे प्रकाशित नहीं कर देते तबतक लोग इसपर अपना निर्णय किस प्रकार दे सकेंगे?

पूरी गवाही प्रकाशित करनेका इरादा तो हमारा है ही। वैसे स्थानीय अखबारोंमें प्रकाशित गवाही सभी देख चुके होंगे ऐसा हम मानते हैं। पर हमारे पास तो अक्षरशः रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट के मुताबिक गुजरातीमें पूरी गवाही छाप देनेका विचार है जिससे किसी प्रकारका अन्याय न हो। हमने स्वयं भी अखबारों में प्रकाशित गवाही पढ़कर ही अपनी टीका की है। और यदि अक्षरशः गवाही पढ़नेपर हमें अपना अभिप्राय बदलनेकी जरूरत महसूस हुई तो हम अवश्य वैसा करेंगे। चूंकि अखबारोंमें प्रकाशित ब्यौरा हमें ऐसा कुछ खराब लगा कि गवाहीकी पूरी प्रति देख लेने तक रुकना हमें ठीक नहीं जान पड़ा। समयपर सचेत कर देना हमने अपना कर्त्तव्य समझा। यदि अखबारोंमें प्रकाशित गवाही सही नहीं थी तो श्री आँगलिया तथा श्री दादा उस्मानका यह फज था कि वे अखबारको उचित सुधार करनेके लिए उस समय पत्र लिखते। खैर, हमने

१. और २. प्रस्तुत साधन सूत्रमें इन स्थानोंपर कुछ हिस्से छोड़ दिये गये हैं।