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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


समझना चाहिए कि हमने ऐसी मनोवृत्तिके विरुद्ध सही सत्याग्रह किया है। पर केवल एक बार सत्याग्रह करनेसे ही हमारे दुःखोंका अन्त नहीं होगा बल्कि जब-जब हमारे कष्ट असहनीय हो उठे तब-तब हमें इस हथियारका प्रयोग करना होगा। ऐसा बारंबार करने पर ही सरकारको हमारी ताकतका अन्दाजा होगा और वह हमारी समुचित माँगोंसे परिचित होगी तथा अपना हठ छोड़ेगी।

इस मुकदमेसे हम यह भी देख पाये हैं कि नये अपील निकायके बननेसे बड़ा सुधार हुआ है। हमें दृढ़ विश्वास है कि पुराना अपील निकाय उपर्युक्त फैसला हरगिज नहीं देता। पुराना अपील निकाय तो जैसा [निर्णय] उसने कुलसम बीबीके मुकदमेमें डर्बनमें किया था वैसा ही [निर्णय] वह इस लड़केके मामलेमें प्रिटोरियामें भी करता।

इस मामलेमें प्रार्थी जिस चतुराईसे लडा है हम उम्मीद करते हैं, कि वह इसी खूबीसे सर्वोच्च न्यायालयमें भी लड़ेगा। यह मामला मजबूत नहीं है, हमने यह कहा है पर इसका मतलब यह नहीं कि इस मामले में कोई दलील ही नहीं। यदि सर्वोच्चन्यायालय उदार दिलसे विचार करेगा तो प्रार्थीके पक्षमें दी गई दलील कायम रखेगा और यदि ऐसा हुआ तो सारी स्त्रियोंके बच्चे आ सकेंगे। और यदि निर्णय [हमारे] विरुद्ध हो जाये तो भी हमें निराश होनेका कोई कारण नहीं है, क्योंकि हम विवाह सम्बन्धी जो महान संघर्ष कर रहे हैं उसमें इसका फैसला भी हो जाता है। इस मुकदमेके आधारपर हम यह अच्छी प्रकारसे जान सकते हैं कि हमारा संघर्ष कितना जबरदस्त है और उसमें से कितने महत्त्वपूर्ण परिणाम निकलनेकी सम्भावना है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-२-१९१४

२६५. हमारी आशाएँ

एक सज्जनका पत्र है:

आपको अच्छा अवसर हाथ लगा है। फिर ऐसा अवसर हाथ नहीं आयेगा। इस समय भारत आपको जैसा सहयोग दे रहा है, और आज चारों ओर जैसी सहानुभूति है भविष्यमें फिर ऐसा सुयोग आते नहीं दिखता। अतः आज सम्पूर्ण नागरिक अधिकारोंकी मांग करनी चाहिए। इस माँगमें सभी बातें आ जानी चाहिए। ताकि हमारी जनताको पुनः कष्ट न उठाने पड़ें। अतः जो मामले सामने हैं उनके अलावा जमीनसम्बन्धी अधिकार, स्वर्ण-कानून, टाउनशिप ऐक्ट, डर्बनमें परवानकी छूट, ट्रान्सवालके परवाने आदि प्रश्न हैं इनके विषयमें भी भविष्यमें कोई अड़चन खड़ी न हो। इनके अलावा मताधिकार, नये स्टेशनोंपर यहूदियोंको दूकानें रखनेकी अनुमति और भारतीयोंपर उसकी रोक, रेलके आरक्षित डिब्बोंमें बारह-बारह मनुष्योंका ठूसा जाना, आदि बातें हैं जिनकी जानकारी आपको भी होगी। अतः मुझे लिखनेको आवश्यकता तो नहीं है फिर भी मैं सहज ही लिखे दे रहा हूँ। मतलब यही है कि ऐसा अवसर पुनः नहीं आयेगा अतः हमें अपने अधिकार प्राप्त कर लेने चाहिए।