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३. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-१४][१]

६. कितना और कितनी बार खाया जाये?

कौन-सी खुराक ठीक है, इसका विचार हम कर चुके हैं। अब हमें यह सोचनेकी जरूरत है कि कितनी मात्रामें और कितनी बार खाया जाये। इसके लिए एक अलग प्रकरण लिखना ही उचित होगा। कुछ अंशोंमें "कितनी बार खाया जाये" यह बात"कितना खाया जाये" के साथ ही जुड़ी हुई है। "कुछ अंशोंमें" कहने का हेतु यह है कि भोजनक जितना परिमाण मनुष्यको खाना चाहिए उतना वह एक ही बारमें नहीं खा सकता। खाना भी नहीं चाहिए। मतलब यह हुआ कि कितना खाया जाये और कितनी बार खाया जाये, ये दोनों बातें आपसमें अभिन्न ही है।

कितना खाया जाये, इस विषय में डॉक्टरोंके अनेक मत है। एक डॉक्टरका कथन है कि खूब खाया जाये। उसने भिन्न-भिन्न प्रकारकी खुराकोंके गुणोंके आधारपर भोजनके परिमाण भी दिये हैं। एक अन्य डॉक्टरका कथन है कि मजदूर और मानसिक परिश्रम करनेवालोंकी खुराकका प्रकार और परिमाण अलग अलग होना चाहिए। तीसरे डॉक्टरका मत है कि मजदूर हो, चाहे महाराजा, दोनोंको एक-सी खुराक खानी चाहिए। यह कोई नियम नहीं है कि गद्दीपर बैठे रहनेवालेका काम कम खुराकमें और मजदूरका अधिकमें ही चल सकता है। किन्तु निर्बल और बलवानकी खुराकका परिमाण कम-अधिक होना चाहिए, यह तो सभी जानते हैं। पुरुष और स्त्रीकी खुराकमें भी भिन्नता होती है। सयाने और बच्चे, बूढ़े और जवान आदिकी खुराकोंकी मात्रामें भी फर्क तो होता ही है। एक अन्य लेखक तो यहाँ तक कहता है कि मनुष्य यदि अपनी खुराक इतनी चबाये कि मुंहमें ही उसका तरल रस बन जाये और वह थूककी तरह अपने-आप गलेसे उतर जाये, तो फिर हमे ५ से १० तोले-भर खुराककी ही जरूरत रहेगी। इस मनुष्यने स्वयं हजारों प्रयोग किये हैं। उसकी पुस्तकोंकी हजारों प्रतियाँ बिकी है और उन्हें बहुत लोग पढ़ते हैं। ऐसी स्थितिमें कितना खाया जाये, इसके लिए परिमाण या मात्रा निर्दिष्ट करनेकी बात व्यर्थ है। किन्तु प्रायः सारे ही डॉक्टर ऐसा लिख गये हैं कि १००में ९९ मनुष्य जरूरतसे ज्यादा खुराक लेते हैं। यह बात

  1. १. पहलेके अध्यायोंके लिए देखिए, खण्ड ११ । इन लेखोंको बादमें पुस्तकके रूपमें प्रकाशित किया गया । इस पुस्तकका हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। हिन्दी अनुवादके आधारपर ए.रामा भय्यरने अंग्रेजीमें ए गाइड टु हल्प नामक पुस्तक लिखी जिसे जुलाई १९२१ में मद्रासके एस० गणेशनने प्रकाशित किया । इस पुस्तकका कई यूरोपीय भाषाओंमें अनुवाद किया गया । सन १९४२ में पूनाके आगाखौ पैलेसमें अपनी नजरबन्दीके दौरान गांधीजीने गुजराती में एक पुस्तक लिखी जिसका डॉ. सुशीला नैपरने की टु हेल्थ शीर्षकसे अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित कराया । यदपि इस पुस्तकका आधार इंडिनयन ओपिनियनमें प्रकाशित लेख-माला नहीं थी, किन्तु गांधीजीके अनुसार दोनोंमें कोई मौलिक भेद नहीं है ।