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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


बूझे ही बयान दे डाला है। यह अवश्य उनकी भलमनसाहत है कि उन्होंने जो कुछ कहा उसे किसोका प्रातिनिधिक वक्तव्य नहीं बताया। उन्होंने साफ कहा कि वे किसीकी ओरसे बयान नहीं दे रहे है और उनकी कही गई बातोंकी जिम्मेदारी भी उनकी अपनी है। अत: उनकी गवाहीसे किसी बड़ी हानिकी सम्भावना नहीं है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-२-१९१४

२६२. विवाहके सम्बन्धमें

हम जानते हैं कि इस देशमें आज विवाहका प्रश्न अत्यधिक गम्भीर होता चला जा रहा है। इस प्रश्नको लेकर आयोग भी दुविधामें पड़ गया है। उसे लेकर स्थानीय कानूनमें महत्वपूर्ण परिवर्तन करनेका प्रश्न खड़ा हो गया है। श्री आंगलिया आदिने इस सम्बन्धमें जो बयान दिये हैं, हमारी समझमें वे भ्रमपूर्ण है। यह प्रश्न इतना जटिल है कि इन्हें इसमें हाथ ही नहीं डालना चाहिए; और यदि डाला ही था तो पूरी समझदारीके साथ हाथ डालते। इस प्रश्नके मूलमें क्या है, जरा इसपर विचार करें। श्री कालियाने जो पत्रव्यवहार किया है उसका सार तो यह है कि जिस भारतीयका विवाह एक ही स्त्रीसे हुआ है उसीका विवाह कानूनी तौरसे जायज माना जाये। और जिसके एकसे अधिक पत्नियाँ हों और वह यदि पुराना निवासी हो तो उसकी सभी पत्नियोंको तथा अवयस्क सन्तानोंको सरकार मेहरबानीके तौर पर दाखिल होने दे। यदि कोई भविष्यमें दो शादियां करता है तो उसे भी अपनी एक पत्नीको लेकर इस मुल्कमें प्रवेश करनेकी अनुमति मिले। इसमें उपर्युक्त अन्तिम दो प्रकारकी स्त्रियों को अन्य कोई कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं होंगे। ऐसा कहकर हम भविष्यके लिए किसी बन्धनमें नहीं बँध जाते। आयोग कुछ ऐसी मांग करता नजर आता है कि वह पुरुष जिसके एक ही पत्नी है यदि अपने विवाहको कानूनन जायज़ करवाना चाहता है तो उसे, जबतक उसकी पहली पत्नी जीवित है, दूसरी शादी न करने की शपथ लेनी चाहिए; उसका विवाह तभी एक पत्नी विवाह माना जायेगा। श्री गांधीने इस दलीलके विरुद्ध एक सख्त आपत्ति उठाई है और कहा है कि इस प्रकारके शपथ-पत्रपर हस्ताक्षर करनेका मतलब तो विवाह या शादीके बारेमें हिन्दू और मुसलमान धर्मको न माननेके बराबर होगा। यह दूसरी बात है कि कानून एक ही--प्रथम-- पत्नीको मान्यता दे। इसमें हिन्दू या मुसलमान किसीके भी अपने धर्म के विरुद्ध आचरण करनेकी बात नहीं आती। ऐसे विवाहको जायज मान लेनेसे तो सैकड़ों भारतीयोंके अधिकार सुरक्षित हो जाते हैं क्योंकि सैकड़ों भारतीय केवल एक ही स्त्रीसे विवाह करते हैं। और एक पत्नीकी स्वीकृतिके लिए सरकार वचन-बद्ध है। यहाँका कानून भी इसे मान्य करता है। आयोग हो या कोई और हमें भविष्यके लिए बाँध रखनेका किसीको अधिकार नहीं है। निश्चित ही, एक पत्नी विवाह कानूनन मान्य