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२६१. नेताओंसे अपील

श्री आंगलिया तथा श्री दादा उसमानके बयान हमने ध्यानपूर्वक पढ़े हैं और हम विचारपूर्वक ही लिख रहे हैं कि इन दोनों नेताओंने कौमको नुकसान पहुंचाया । आयोगके सदस्य उनका बखान करें, इसका कोई मूल्य नहीं है। उन्होंने जो गवाही दी है उससे ऐसा लगता है मानो परवानों और प्रवासके सम्बन्धमें जिन कष्टोंका उन्होंने उल्लेख किया है, वे केवल उतने ही हैं। इस प्रकारका बयान देकर उन्होंने [हमारी मांगकी] एक सीमा बाँध दी। गनीमत इतनी है कि उनका बयान समाजकी ओरसे कही गई अन्तिम बात नहीं है। उनकी माँग स्वीकृत हो जाये तो भी बहुत-सी बातें बाकी रह जाती है। और जबतक उन सबके विषयमें निबटारा नहीं हो जाता तबतक भारतीय समाजकी ओरसे सत्याग्रह छिड़ जानेकी सम्भावना सदैव ही बनी रहेगी। यदि इनका विचार साक्ष्य पेश करनेका ही था तो उनका कर्तव्य था कि सारी बातें एकत्रित करके किसी विश्वासपात्र वकीलसे उसका सार निकलवानेके बाद ही उन्हें पेश करते। वैसे समाजके प्रति उनका सर्वोपरि कर्तव्य तो यह था कि हजारों लोगों द्वारा पास आयोगके बहिष्कारके प्रस्तावको मानकर चुप रह जाते। और यदि बयान देना ही था तो फिर उन्हें सतर्कतासे सभी बातोंकी जाँच कर लेनी थी। उनकी गवाहियोंका जो कटु परिणाम हुआ है वह यह है कि श्री विनकॉलने हमारे विरुद्ध बहुत सख्त बयान दिया। श्री विनकॉलने जो तथ्य पेश किये यदि वे ठीक होते तो हमारे लिए फिर कुछ भी कर सकना सम्भव न रहता, किन्तु हम जानते हैं कि उनका बयान सही नहीं है। और उनके दिये हुए कई तथ्य बिलकुल गलत है। जो लोग नेता कहलाते हैं उन्हें अपना कर्तव्य ध्यान में रखना चाहिए। उन्हें बयान देने ही थे, तो पर्याप्त साक्षियाँ पेश करके प्रमाणित भी करना था। जब आयोगके समाप्त हो जानेका समय आ गया तो उन्हें जैसे-तैसे, तत्काल जिम्मेदारीसे बरी हो जानेकी दृष्टिसे श्री सुकरकी तरह ऐसा नहीं करना चाहिए था। आयोग बैठनेको है यह खबर एक माह पहले मालूम हो गई थी। अतः उन्हें तभीसे तैयारी शुरू कर देनी थी ताकि सप्रमाण बयान पेश कर सकते। इन्हीं कारणोंको लेकर हमें यह मानना पड़ता है कि इन दोनों नेताओंने समाजके प्रति अपना कर्तव्य पालन करनेके बजाय उसे हानि पहुंचानेवाला कार्य ही किया है। साथ ही उनका आभार भी मानते है कि उन्होंने आयोगके सामने समाजकी कच्ची-पक्की बातें नहीं रख दी। श्री आंगलियाने कहा कि उन्हें समस्त जाने-माने प्रतिष्ठित भारतीयोंकी ओरसे बोलनेका अधिकार है। ऐसे किन प्रतिष्ठित भारतीयोंकी ओरसे वे बोले? और यदि श्री आंगलियाका दावा सही है तो उन प्रतिष्ठित भारतीयोंपर हमें दया आती है और हमें उनके लिए दुःख है। हमारी रायमें ऐसा कहकर श्री आंगलियाने भूल की है तथा अपनी स्थिति और अपने दायित्वका कोई खयाल नहीं किया।

श्री सुकरके सम्बन्धमें हम कुछ नहीं कहना चाहते। यह नौजवान सज्जन तो अपने दर्पमें ही चूर है। और श्री ऐय्यरके बारेमें भी क्या कहें? उन्होंने बिना समझे