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२५५. स्मट्स-गांधी पत्र-व्यवहार

इन पत्रोंका हमने [इस अंकमें] अन्यत्र अनुवाद दिया है। हमें आशा है कि उन्हें प्रत्येक भारतीय ध्यानपूर्वक पढ़ेगा। उनके ऊपर विस्तारसे चर्चा करनेके लिए हमारे पास न तो जगह है और न समय ही। इन दोनों पत्रोंका सारांश निम्नलिखित है :

(१) आयोगके सम्मुख एक भी भारतीयको गवाही नहीं देनी चाहिए।

(२) आयोगमें संशोधन-परिवर्धन करनेके हमारे अनुरोधको सरकारने अस्वीकार कर दिया है।

(३) इसलिए यदि भारतीय गवाही देंगे तो समाजकी प्रतिज्ञा भंग होगी।

(४) सरकारने इस बातको स्वीकार किया है कि कमीशनके सम्मुख गवाही न देनेका हमारा उद्देश्य पवित्र एवं धार्मिक है।

(५) चूंकि हम आयोगके सम्मुख कोड़े आदि पड़ने के सम्बन्धमें गवाही नहीं दे सकते इसलिए दूसरी अदालतमें भी [इस सम्बन्धमें ] गवाही देनेसे इनकार करना हमारी निर्बलताका द्योतक नहीं है। बल्कि इससे हम और भी अच्छे सत्याग्रही साबित होते है। हमारे इस रवैयेकी सरकार प्रशंसा करती है।

(६) इधर कुछ दिनोंसे हम इस बातपर जोर देते रहे हैं कि हमसे सम्बन्धित विषयोंपर कार्रवाई करते समय सरकारको हमसे सलाह लेनी चाहिए; हमारी यह माँग स्वीकार कर ली गई है।

(७) अतएव हमारा सर बेन्जामिन रॉबर्टसनके सम्मुख अपनी बात रखना उचित ही होगा।

(८) सरकारने बताया है कि उसका इरादा हमारी मांगोंको स्वीकार करके जहाँ आवश्यकता हो वहाँ कानूनमें परिवर्तन करके हमें सन्तुष्ट करनेका है, और सरकारको पूरी आशा है कि यह निकट भविष्यमें होनेवाले संसदके अधिवेशनमें सम्भव हो सकेगा।

(९) ऐसी परिस्थितिमें हमारे लिए यह उचित ही होगा कि हम सरकारको उसकी यह इच्छा पूरी करनेका अवसर दें और फिलहाल सत्याग्रहको फिरसे आरम्भ न करें।

(१०) सरकार अपनी ओरसे कोड़े मारने तथा अन्य अत्याचारपूर्ण कार्रवाइयोंके सम्बधमें आयोगके सम्मुख नकारात्मक गवाही नहीं दे सकती।

(११) इस समय जेलों में कैद सत्याग्रहियोंको सरकार रिहा कर देगी। सरकारका कहना है कि वह [भारतीयोंको] जो कुछ देना चाहती है वह कमीशनकी मार्फत देगी।