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तूफानका संकेत


ही कहा कि यह एक परीक्षात्मक मुकदमा है। दोनों पक्षोंने भी उसे इसी रूपमें समझा था, और न्यायाधीशके सामने सिर्फ यही सवाल था कि प्रवासी कानूनके मामलों में इस्लामके नियमोंके अनुसार की गई शादियोंको केपके न्यायालय' मान्यता देंगे या नहीं। इस मुद्दे पर माननीय न्यायाधीशने जोर देते हुए असन्दिग्ध निर्णय दिया है कि ऐसी शादियाँ अवैध है। यही मुद्दा है जिसपर जोहानिसबर्गकी सभामें विरोध प्रकट किया गया। सरकार इस फैसलेको उसकी तार्किक सीमा तक भले न ले जाये,उसमें इतना साहस भी नहीं है, किन्तु कानूनन यह सम्भव तो हो ही सकता है।सभाके सामने श्री रिचने अपने भाषणमे इस सम्भावनाका स्पष्ट निरूपण किया। कुछ बाते ऐसी होती है जिनके बारेमें हम तबतक चिन्ता नहीं करते जबतक कि वे हमारे सामने ही आकर खड़ी नहीं हो जाती; किन्तु दूसरी कुछ बातें ऐसी भी होती है जिनके घटित होनेकी सम्भावनाओंको हमें किसी भी तरह रोकना चाहिए। कोई भारतीय पति तबतक शान्त नहीं बैठ सकता जबतक उसकी पत्नीकी पद-मर्यादापर शंका उठाये जानेकी सम्भावना है और इस सम्भावनाके वास्तविकतामें बदल जानेपर उसके परिणामोंका खतरा मौजूद है।

इसलिए हमारी समझसे, श्री काछलियाके लिए यह सर्वथा उचित था कि उन्होंने यह सभा बुलाई। उक्त तथाकथित सफाईसे सभाकी मांगोंका बल कम नहीं किया जा सकता। यह भी उचित था कि तमिल लोगोंकी सभा सबसे पहले हुई। पिछले संघर्ष में तमिल लोगोंने ही सबसे ज्यादा कष्ट-सहन किया था। अब वे सबसे आगे हैं। हमें आशा है कि दक्षिण आफ्रिकाके अन्य नगर जोहानिसबर्गके नेतृत्वका अनुसरण और उसकी कार्रवाईका समर्थन करेंगे। और सबके बढ़कर तो, हमें हार्दिक आशा है कि सरकारके सामने जो सुनहला अवसर आया है उसे वह व्यर्थ नहीं जाने देगी और अपने विधेयकपर विचार करते समय इस विशाल सभाके सर्वथा उचित अनुरोधको मान लेगी।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-४-१९१३