पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/३६८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ओरसे वचन कैसे दे सकता था? मैंने जनरल स्मट्ससे यही कहा था कि मैं अपने देशवासियोंको अपने पत्रकी भावनाके अनुरूप सलाह दे सकता हूँ, परन्तु मैंने समाजकी ओरसे कोई वचन नहीं दिया, इसलिए आप लोग बिलकुल स्वतन्त्र है और यदि आप चाहें तो समझौतेको अपने दिमागसे बिलकुल रद कर दें, परन्तु मेरा अपना विश्वास है कि इसे स्वीकार किया जा सकता है। समझौता हर तरहसे सम्माननीय और गरिमापूर्ण है और इसे स्वीकार करनेसे काफी कष्टोंसे बचा जा सकता है। इतना ही नहीं, यदि हो सके तो हम चाहते हैं कि वाइसरायको भी अपने प्रति मैत्रीपूर्ण बना लें। परन्तु यदि अन्तःकरण गवाही न दे, यदि हमने जो शपथ ली है उसके यह प्रतिकूल जान पड़े तो हम किसी दूसरेका मत स्वीकार नहीं करेंगे, फिर वह मत चाहे वाइसरायका हो, या श्री गोखलेका, अन्य मित्रोंका अथवा सारी दुनियाका। परन्तु यदि अपनी शपथ निभाते हुए और अपने अन्तःकरणको सन्तुष्ट रखते हुए भी हम किसीकी बात मान सकते हैं तो हमें अपने मित्रों और विशेष तौरसे एक इतने भले वाइसराय, जिनके मुकाबले लॉर्ड रिपन और लॉर्ड विलियम बैन्टिकके अलावा शायद कोई दूसरा वाइसराय नहीं हुआ, की आशाएं पूरी करनेकी अधिकसे-अधिक कोशिश करनी चाहिए और फिर अभी यह भी तो मालम नहीं कि वाइसराय हमारे लिए आगे और क्या-क्या करनेकी बात सोच रहे हैं। वाइसरायको यही छाप हमारे मनपर पड़ती है और श्री ऐंड्यूजने उनके उत्तम गणों के बारेमें जो कुछ मझे बतलाया है उससे यह और भी परिपुष्ट होती है। इस स्थितिमें हमें वाइसरायको इच्छाओंका ध्यान रखना चाहिए क्योंकि अपनी शपथको भंग किये बिना भी हम ऐसा कर सकते हैं। हमारे प्रतिष्ठित देशवासी, जिनको भारत पूजनीय मानता है और जिनके प्रति हम अपनी श्रद्धा व्यक्त कर चुके हैं और जो बीमारीके दौरान पलंगपर पड़े-पड़े भी हमारे लक्ष्यके लिए प्रयत्नशील रहे हैं और जिनके किये वह विश्वविदित होने के साथ-साथ भारतके कोने-कोनमें गूंज गया है, वे श्री गोखले भी यही चाहते हैं। लॉर्ड एंटाहिल भी कहते रहे हैं: वे उच्च आदर्शको लेकर संघर्ष कर रहे हैं। उनकी विजय निश्चित है पर अभी उनको आगे कार्रवाई नहीं करनी चाहिए; वे अपने पक्षकी न्यायपूर्णता यथेष्ट रूपसे प्रदर्शित कर चुके हैं। उन्होंने ब्रिटेनकी जनताके अन्तःकरण तक अपनी आवाज पहुँचा दी है। मगर अब उनको आयोगके प्रति अपना विरोध व्यक्त करते हुए उसके सामने साक्ष्य प्रस्तुत कर देना चाहिए।" उनकी इस बात को हम स्वीकार नहीं कर सके थे, पर इस वर्तमान व्यवस्थाको हम स्वीकार कर सकते हैं। यह समझौता हर दृष्टिसे अच्छा, गरिमापूर्ण और स्वीकार्य है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१-१९१४

१. पोलक, सी० एफ० ड्यूज और कैलेनबैकके भाषणोंके बाद, पारसी रुस्तमजीने निम्नलिखित प्रस्ताव पेश किया था, जो सर्वसम्मतिसे पास हुआ था: “नेटाल भारतीय संघके तत्वावधानमें हुई ब्रिटिश भारतीयोंकी यह सभा सरकार और श्री गांधीके बीच सम्पन्न हुए अस्थायी समझौतेकी शौंको सुननेके पश्चात् इसके द्वारा श्री गांधी द्वारा उठाये गये कदमकी ताईद करती है और पूरे हृदबसे आदरके साथ आशा करती है कि श्री गांधीक पत्र में उल्लिखित भारतीय समाजका अनुरोध मान लिया जायेगा।"