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भाषण : सार्वजनिक सभामें


समझा सके तो फिर उसे दुनियाके यह कहनकी परवाह नहीं करनी चाहिए कि "समाजके पास कोई प्रमाण है ही नहीं और वह इसीलिए अब न्यायालयमें जानेसे डरता है; आरोप तो भारतकी जनताको भावनाएँ उभारनेके लिए ही वहाँ प्रचारित किये गये थे।" हमको ऐसी आलोचना सुननेके लिए तैयार रहना चाहिए। क्योंकि लोग तो अच्छसे-अच्छे कामकी भी नुक्ताचीनी करते ही हैं। परन्तु यदि सरकार समाजके रुखको समझ ले, तो मेरा खयाल है कि सत्याग्रहियोंके नाते ऐसा ही करना हमारे लिए उचित रहेगा। हम सच्चे सत्याग्रही नहीं हैं। हमने कानूनका सहारा लेकर न्यायालयोंमें अपने कार्योंकी सफाई पेश की है। खरा सत्याग्रही ऐसा नहीं करता। परन्तु हम अभी विशुद्ध सत्याग्रहकी अवस्था तक नहीं पहुंचे हैं। जो भी हो, हमें अपने सामने ऐसा आदर्श रखना चाहिए कि हम किसी दिन उस अवस्था तक पहुँच सकें और सच्चे विशुद्ध सत्याग्रही कहलायें। उस अवस्था तक पहुँचनेसे पहले हम अपनेको विशद्ध सत्याग्रही नहीं कह सकते। लेकिन यह सोचकर हाथपर-हाथ रख कर बैठनकी भी जरूरत नहीं, इसीलिए मैंने महसूस किया कि हम फिलहाल यह कदम उठा सकते हैं और इसीलिए मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा कि सरकारके सामने ऐसा प्रस्ताव रख दिया जाना चाहिए। सरकारने मुझको उत्तरमें जो पत्र लिखा कुल मिलाकर उसका आशय यही है कि सरकारने सलाह-मशविरेके सिद्धान्तको स्वीकार कर लिया है, आरोपोंके प्रश्नको बिलकुल ही न उठानेके समाजके तात्पर्यको भी मान्यता दी है। आयोगके सामने साक्ष्य पेश न करनेका समाजका मंशा भी उचित माना है, और यह आश्वासन दिया है कि वह समाज द्वारा रखे गये प्रस्तावोंके अनुकूल ही मामलेका निबटारा करना चाहती है और सो भी आयोगके माध्यमसे ही। हमारा खयाल है कि हमारे समाजकी माँगें इतनी न्यायोचित हैं और पिछले कुछ महीनोंके दौरान हमने जो कष्ट सहन किये हैं उनके कारण वे इतनी पवित्र और इतनी दृढ़ बन गई है कि उनके लिए आयोगसे सिफारिश करानमें कोई कठिनाई नहीं पड़ेगी। मैं समझता हूँ कि सर बेन्जामिन रॉबर्ट्सनकी मौजूदगी हमारे आत्म-विश्वासको बढ़ाती है क्योंकि उनके नामके साथ एक भारी प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है और चूँकि वे अपनी व्यक्तिगत हैसियतसे नहीं बल्कि वाइसरायके प्रतिनिधिको हैसियतसे आये हैं, इसलिए आयोगके सामने वे जो साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे उसका निःसन्देह बड़ा महत्व होगा। ऐसी परिस्थितिमें हमें चिन्ता करनेकी जरूरत नहीं, क्या होगा यह सोचकर डरनेकी जरूरत नहीं। जबतक सत्याग्रह-जैसा विशुद्धतम अस्त्र हमारे पास है तबतक किसी भी सत्याग्रहीको डरनेका कोई कारण नहीं। भविष्य तो हर तरह हमारे कामोंपर निर्भर है और हम दृढ़ बने हुए हैं। इसलिए मैं बिना किसी हिचकके कहता हूँ कि समझौतेको स्वीकार किया जाना चाहिए। आशा है कि सभा हमारे इस कदमको ताईद करेगी। लेकिन मैंने समाजकी ओरसे इसकी स्वीकृतिका वचन नहीं दिया है। अन्य अवसरोंपर मेरे दिमागमें बात बिलकुल साफ थी और मैं जानता था कि समाज क्या चाहता है। परन्तु इस अवसरपर एक नई परिस्थिति सामने आ गई थी और ऐसी हालतमें समाजसे इसकी परिपुष्टि करा लेना मुझे बिलकुल जरूरी जान पड़ा। इस विषयपर मुझे भी अधिक सोचनेका समय नहीं मिल पाया था इसलिए मैं समाजको