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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


जन्मे भारतीयोंके केप-प्रवेशके अधिकारको बहाल करना; (४) ऑरेंज फ्री स्टेट सम्बन्धी जातीय भेदभावके बारेमें जो थोड़ी-सी कठिनाई रह गई है उसे दूर करना; और (५) प्रदत्त अधिकारोंका उचित सम्मान करते हुए वर्तमान कानूनोंको न्यायोचित ढंगसे लागू करना। अन्तिम तीन मुद्दोंपर तो प्रशासनिक रूपसे कार्रवाई की जा सकती है। और पहले दो मुद्दोंके लिए कानूनको संशोधित करना पड़ेगा। मैने जनरल स्मट्सके सामने इस समस्याको हल करनेका सबसे सरल और कम समय-साध्य तरीका पेश किया था। जनरल स्मट्सने कहा था कि वे इसपर विचार करेंगे और इसपर विचार करने तथा मन्त्रि-मण्डलसे परामर्श करने के बाद उन्होंने श्री एण्ड्रयूजको उपस्थितिमें कहा था कि सरकार इनको स्वीकार करनेके लिए तो तैयार है। लेकिन वह चाहती है कि आयोग भी इनकी छानबीन कर ले; और यों तो उसे समाजके प्रतिनिधियोंसे मिलने में खुशी होती लेकिन अब इस अवस्थापर आयोग सम्बन्धी प्रस्तावोंके सिलसिलेमें उनसे मुलाकात करना सम्भव नहीं।

इससे तो गतिरोध पैदा हो जायेगा। इसका अर्थ है कि या तो सत्याग्रह और उसके साथ होनेवाली कार्रवाई फिर शुरू की जाये या फिर सरकार जो भी करनेको कहती है उसके करनेका अवसर उसे मिलने तक के लिए सत्याग्रह स्थगित कर दिया जाय। और मुझे कभी श्री एन्ड्रयूजसे सलाह-मशविरा करनेके बाद इस निष्कर्षपर पहुँचने में अधिक कठिनाई नहीं हुई कि सत्याग्रह स्थगित कर देना ही समाजके लिए उचित होगा। मैं इस निष्कर्षपर इसलिए पहुँचा कि मेरी समझसे सरकारने ठीक ही रुख अपनाया है और सरकार इस बातको समझने और उचित महत्व देनेके लिए भी तैयार है कि समाज आयोगकी कार्रवाईमें भाग न लेनेका अपना पवित्र दायित्व निभानेके लिए वचनबद्ध है। समाजके इस रुखपर सरकारने कोई नाराजी भी जाहिर नहीं की। मैंने इसपर जनरल स्मट्सको यह सुझाव दिया था कि यदि समाज सत्याग्रह स्थगित करता है तो सरकारके लिए यही उचित होगा कि वह सत्याग्रही बन्दियोंको रिहा कर दे। तब फिर क्रूरताके सम्बन्धमें लगाये गये आरोपोंका प्रश्न बच रहता है। वह बड़ा गम्भीर है। यदि समाज आयोगके न्यायिक पक्षके बारेमें भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करेगा तो उन आरोपोंका क्या होगा? और यह तो स्पष्ट ही दिख रहा है कि वर्तमान परिस्थितिमें तो साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की जा सकती। इसका मतलब तो यही हआ कि हमारे पास जितने भी साक्ष्य हैं उन सबको पुस्तकाकार प्रकाशित कर दिया जाये और सबको खुली छूट दे दी जाये कि जो भी चाहे समाजपर मानहानिका दावा कर सकता है, जिससे आरोप साबित करने के दौरान समाज अपनी बात सबके सामने सिद्ध कर सके। यों एक सत्याग्रहीके नाते हमें मुकदमेमें पड़नकी कोई जरूरत नहीं है। इस प्रकार निरर्थक क्षोभ टाला जा सकता है। और जो लोग खुद अपने दिमागसे सोचते हैं और सत्याग्रहका इतिहास जानते हैं वे तो समाजके कार्योंका औचित्य समझ ही लेंगे। लेकिन समाजके कार्योका औचित्य यदि सरकार समझ ले और यदि समाज मानहानिके दावेके सिलसिले में होनेवाली कानूनी कार्रवाई में सफाई पेश न करनेका अपना उद्देश्य सरकारको