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२५०. पत्र : भवानी दयालको

बॉक्स, ११५६
प्रिटोरिया
शुक्रवार, [जनवरी २३, १९१४]'

भाई श्री भवानी दयाल,

मैं उम्मीद रखता हुँ कि तुमारी तबीयत ठीक होगी, तुमारा काम जलमें बहुत अच्छा रहा यह बात सुन में बहोत खुश हुआ था। तुमारा सन्देशा मेरेको मीला था, तुमारे लीये फीनिक्स में जगा तैयार है। तुमारे वहाँ सहकुटुम्ब रहना । समाधानीकी जो बात चलती है उस बारेमें खबर भी पोलाकके पाससे मिलेगी।

मोहनदास गांधीका वंदेमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल प्रति (सी० डब्ल्यू ० ५६८९) से। सौजन्य : विष्णु दत्त दयाल

२५१. तार : गो० कृ० गोखलेको

[डर्बन
जनवरी २५, १९१४ या उससे पूर्व]'

अस्थायी समझौता सम्पन्न। औपचारिक घोषणाके कारण आयोगकी तो नहीं, रॉबर्टसनकी मदद करेंगे। आयोगके बाद विधान बनानेका सरकारी वचन। तबतक सत्याग्रह स्थगित। भारतीयोंसे परामर्श का सिद्धान्त मान्य । सरकार रॉबर्टसन दोनों सन्तुष्ट। बन्दी रिहा हो रहे हैं। समझौतेके लिए अब अधिक अनुकूल अवसर।

गांधीजीके स्वाक्षरों में संशोधित अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५९२८) की फोटोनकलसे।

१. भवानी दयालजी शनिवार, जनवरी १७, १९१४ को जेलसे रिहा हुए थे। जान पड़ता है यह पत्र इस तिथिके बाद पड़नेवाले शुक्रवारको ही लिखा गया था। इंडियन ओपिनियनके हिन्दी विभागका संपादकख भी उन्होंने उसके २८-१२-१९१४ के अंकसे संभाला था।

२. अस्थायी समझोता सम्पन्न होनेके तुरन्त बाद गांधीजीने २५ जनवरीको एक सार्वजनिक सभामें व्याख्या की थी; देखिए अगला शीर्षक। सम्भवत: यह तार २५ जनवरी या उससे पहले भेजा गया था।