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पत्र : गृह-सचिवको

पर श्री गांधी यही आग्रह करते रहे कि वे अपनी प्रतिज्ञाके दायित्वोंको अटल मानते हैं। जनरल स्मट्सने तब उनके प्रस्तावोंपर विचार करके यथाशीघ्र उत्तर देनके वचनके साथ भेंट समाप्त की।

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स ५५१/५४
 

२४६. पत्र: गृह-सचिवको

प्रिटोरिया
जनवरी २१, १९१४

सेवामें

गृह-सचिव
प्रिटोरिया

महोदय,

मैं फीनिक्स छोड़नसे पहले जनरल स्मट्सको धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होंने इतने अधिक व्यस्त होते हुए भी भेटके दौरान बड़े धैर्य और बड़े स्नेहके साथ मुझसे बातें कीं। मेरे देशवासी उनके इस अनुग्रहको कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करेंगे।

मैं समझता हूँ कि मन्त्री (भारतीय जाँच आयोगके सम्बन्धमें) मेरे दोनों सुझाव स्वीकार करने में असमर्थ हैं। उनको न तो मेरा यह सुझाव स्वीकार्य है कि (१) नीति विषयक प्रश्नोंकी जाँच करते समय भारतीय हितोंका प्रतिनिधित्व करनेवाला एक सदस्य सम्मिलित कर लिया जाये; और न यह कि (२) केवल इन प्रश्नोंपर विचार करने के लिए एक दूसरा आयोग नियुक्त किया जाये जिसमें भारतीय प्रतिनिधि शामिल हों, और उस स्थितिमें वर्तमान आयोग केवल एक न्यायिक आयोग ही बना दिया जाये, मैंने तीसरा सुझाव भी रखा था लेकिन सरकारके निर्णयको देखते हुए उसे यहाँ दोहरानेकी आवश्यकता नहीं। यदि सरकारने मेरे एक भी सुझावको ठीक मान लिया होता तो मेरे देशवासी वर्तमान आयोगके काममें हाथ बँटा सकते थे। परन्तु इस आयोग(जिसका रूप राजनीतिक है और न्यायिक भी) के समक्ष दी गई मुख्य गवाहियोंके सम्बन्धमें बड़ी ईमानदारीसे उनकी कुछ आपत्तियाँ हैं और उनके लिए ये आपत्तियाँ अब एक पवित्र और धार्मिक रूप ग्रहण कर चुकी हैं। मैं संक्षेपमें कह दूं कि उनकी इन आपत्तियोंका आधार यह प्रबल भावना है कि नीति-विषयक प्रश्नोंपर विचार करते समय भारतीय समाजसे या तो परामर्श किया जाना चाहिए था या उसे प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए था।

१. बादको वार्ताके लिए, देखिए परिशिष्ट २०।।

२. इसे २८-१-१९१४ के इंडियन ओपिनियनमें पुन: प्रकाशित किया गया था।

१२-२१