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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


७१११, पृष्ठ ५१) में इसके बारेमें श्री गांधीका सुझाव स्वीकार करनेकी सहमति प्रकट कर दी थी। श्री गांधीने कहा कि उन्होंने उस पत्रके उल्लिखित अनुच्छेदका वैसा अर्थ नहीं लगाया था, लेकिन यदि उसमें थोड़ा-सा शाब्दिक संशोधन कर दिया जाये तो कठिनाई दूर हो जायेगी।

श्री गांधीने बतलाया कि यदि जनरल स्मट्स उनके चारों मुद्दोंके बारेमें स्पष्ट रूपसे एक लिखित आश्वासन दे दें, तो वे भारतीयोंकी शिकायतोंके समूचे प्रश्नको निबटा हुआ मान लेंगे। तब आयोगको आम शिकायतों या नीतिके सम्बन्धमें विचार करनेकी आवश्यकता नहीं रहेगी। उस स्थितिमें आयोगकी जाँच-पड़तालका क्षेत्र सत्याग्रह आन्दोलनकी हालको घटनाओं और हड़ताल और उस आन्दोलन तथा उसके दमनके तरीकेके कारण लगाये जानेवाले विभिन्न आरोपों तक ही सीमित रहेगा। उसके आधारपर वे और उनके मित्र आयोगके सामने उपस्थित होकर साक्ष्य प्रस्तुत करनेके लिए तैयार रहेंगे। और यदि सर जेम्स रोज-इन्स या श्री शाइनरको आयोगमें सम्मिलित कर लिया जाये तो वे आश्वासन न मिलनेपर भी आयोगके सामने उपस्थित होकर उसके विचारके लिए सम्मिलित सभी विषयोंके सम्बन्धमें साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे। मेरा खयाल है कि उस दशामें वे भारतीयोंकी सभी, १८८५ से आजतक की सभी, शिकायतोंको ब्यौरेवार ढंगसे उठायेंगे। उन्होंने यह भी सूचित किया कि आयोगके सामने उनका प्रारम्भिक वक्तव्य ही कमसेकम दो दिन चलेगा।

और यदि उनके किसी भी वैकल्पिक प्रस्तावको स्वीकार नहीं किया गया तो वे आयोगसे कोई सरोकार नहीं रखेंगे और वे अपने आपको कुछ भी करने के लिए स्वतन्त्र मानेंगे। हालाँकि उस स्थितिमें भी वे अपने इस वचनको निभायेंगे कि वर्तमान औद्योगिक झगड़ोंका निवटारा न होने तक वे फिरसे सत्याग्रह आन्दोलन छेड़कर सरकारको परेशानीमें नहीं डालेंगे।

जनरल स्मट्सने बतलाया कि आयोगके वर्तमान गठनमें कोई भी परिवर्तन करनेपर उनको स्पष्ट ही कुछ आपत्तियाँ हैं। उन्होंने श्री गांधीको यह समझानेकी कोशिश की कि आश्वासन मांगने के बदले आयोगके सामने अपनी शिकायतोंके चारों मुद्दे पेश करना उनके अपने ही हितमें रहेगा। इससे यदि सरकार आयोगको सिफारिशोंको आधार बनाकर ही सुधारका कानून बनाना चाहे तो सरकारको कहीं ज्यादा आसानी होगी। सर विलियम सॉलोमन और श्री एसेलेनसे व्यक्तिगत तौरपर बातचीत करनेके बाद मन्त्री महोदयको पक्का विश्वास हो गया है कि आयोग सुधारके कानूनकी सिफारिश अवश्य करेगा और इसलिए न्यायाधिकरणके सामने इन मुद्दोंके सम्बन्धमें अपने विचार स्पष्ट न करनेका अवसर हायसे खोना श्री गांधीके लिए अविववेकपूर्ण होगा।'

१. लॉर्ड ग्लैडस्टनने इसपर कहा था : “ श्री गांधीके पहले दो मुद्दोंके बारेमें ही नया विधान बनानेकी जरूरत पड़ेगी।"