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२४२. अमर-पुरुष हरबतसिंह

हरबतसिंह एक गिरमिटिया भारतीय थे। उनकी आय सत्तर वर्षकी थी। उनका [ यहाँ ] कोई सगा-सम्बन्धी न था। गत सोमवारको उनका देहावसान हो गया। समस्त भारतीय समाज उनके लिए शोक प्रकट करता है। इस विशाल देशमें उनका भी अपना न था; अब इस देशमें रहनेवाले डेढ लाख भारतीय उनके सगे-सम्बन्धी हो गये हैं। साधारण परिस्थितियोंमें एक भी भारतीय जिसके मरने के बारेमें कुछ न जान पाता, इस असाधारण परिस्थितिमें मरनेके कारण उससे सारा हिन्दुस्तान परिचित हो जायेगा। आप पूछेगे, इसका क्या कारण है। उत्तर यह है कि हरबतसिंह सत्याग्रही थे और जिस प्रकार सत्य अमर है उसी प्रकार दढ़तापूर्वक सत्यका पालन करनेवाले भी अमर हो जाते हैं। जैसे सूर्य ढंपर्नसे छिप नहीं जाता वैसे ही कोई सत्यको चाहे जितना छिपानेका प्रयत्न करे वह प्रकट होकर ही रहता है। सत्यका रंच-मात्र पालन करनेवाला मनुष्य भी छिपा नहीं रहता। बहुत पुराने गिरमिटिया होनेके कारण हरबतसिंहको ३ पौंडका कर नहीं देना पड़ता था। फिर भी अपने अन्य भाइयोंको संघर्ष करते देखकर उन्होंने भी उसके लिए निकलना पसन्द किया।

इस समाचारके मिलते ही कि उनकी लाशको दफना दिया गया है, हमने सरकारसे इसे लौटा देनेका अनरोध किया। इस लेखके प्रकाशित होने तक सरकारकी मिल चुकेगी। मृत शरीर मिलनेके बाद उसका दाह-संस्कार किया जायेगा। हमें उम्मीद है कि प्रत्येक भारतीय शव-यात्रामें शामिल होगा।

रबतसिंहने इस महान संघर्ष में शरीक होकर अपना नाम अमर कर दिया है। हमारी कामना है कि उनकी जैसी हिम्मत और सद्बुद्धि प्रत्येक भारतीयको प्राप्त हो।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-१-१९१४

२४३. भेंट : प्रिटोरिया न्यूज' के प्रतिनिधिको'

[प्रिटोरिया
जनवरी ९, १९१४ से पूर्व]

[गांधीजी ] मैं आपको इस समय जो गोपनीय बातचीत चल रही है, उसके बारेमें कुछ नहीं बता सकता।

[संवाददाता] रेलवे हड़तालके बारेमें आपका क्या विचार है ? रेलवे हड़तालसे मेरा कुछ सरोकार नहीं है।

१. ९ जनवरीको सुबह गांधीजी सी० एफ० ऍड्यूजके साथ स्मटससे बातचीतके लिए प्रिटोरिया आये । समाचारपत्रके एक संवाददाताने गांधीजीसे सत्याग्रहके विषयमें बातचीत की।